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कलाम
बर्गश्ता-ओ-बद-ज़न सा पाते हैं ख़ुदा हाफ़िज़अब हम तिरी महफ़िल से जाते हैं ख़ुदा हाफ़िज़
ताबिश कानपुरी
कलाम
वही कुछ हुस्न के जल्वों का पूरा लुत्फ़ पाते हैंजो अपने दिल को ख़ुद इक मुस्तक़िल का'बा बनाते हैं
कामिल शत्तारी
कलाम
अनवर फ़र्रूख़ाबादी
कलाम
कभी का'बे में पाता हूँ कभी बुत-ख़ाने के अंदरलगा के तुझ से दिल फिरता हूँ मारा-मारा मैं दर-दर
फ़राज़ वारसी
कलाम
नसीब-ए-ज़ाइराँ बे-शक करामात-ओ-बुजु़र्गी हैहमेशा से शर्फ़ पाते रहे अस्लाफ़ का'बा में