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अब हैं ग़ुलाम-आफ़रीं मदरसा-ओ-ख़ानक़ाहमतला'-ए-मशरिक़ पे है ख़ंदा-ए-मग़रिब गवाह
कोई एहसान न भूलेगा ये मौलाई काअशरफ़-उल-ख़ल्क़ ही रुत्बा है पज़ीराई का
अमीन-ए-मोहब्बत रहें दोनों 'मुश्ताक़'यही तुझ से ग़ौस-उल-वरा चाहता हूँ
'अली इमाम-ए-मनस्त-ओ-मनम ग़ुलाम-ए-'अलीहज़ार जान-ए-गिरामी फ़िदा-ए-नाम-ए-'अली
छींटे देती हुई रिंदों को घटाएँ आईपानी बरसाती हुईं ठंडी हवाएँ आई
याद उन की दिल में रहती है और हिज्र की रातें होती हैंआँखें यूँ झम-झम रोती हैं जैसे बरसातें होती हैं
'अली इमाम-ए-मन-अस्त-ओ-मनम ग़ुलाम-ए-’अलीहज़ार जान गिरामी फ़िदा ब-नाम-ए-'अली
मेरी हर नज़र में सनम ही सनम हैसनम की नज़र में करम ही करम है
मेरी आँखों में आ गया कोईअपना जल्वा दिखा गया कोई
रात सारी जनाब ख़ूब रहीइंतिज़ारी जनाब ख़ूब रही
खींच दी तस्वीर तू ने ऐ मोहब्बत पीर कीदिल में जल्वा पीर का आँखों में सूरत पीर की
मजबूर हूँ लाचार हूँ ऐ जान-ए-तमन्नामैं जीने से बेज़ार हूँ ऐ जान-ए-तमन्ना
क्यूँ परेशाँ है तबी'अत आज-कलक्या किसी से है मोहब्बत आज-कल
ख़ुदा की शान मेरे पीर हैं जीनबी की जान मेरे पीर हैं जी
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