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का'बे का शौक़ है न सनम-ख़ाना चाहिएजानानः चाहिए दर-ए-जानानः चाहिए
मय-कदे तेरे तिरी मस्जिद सनम-ख़ाना तिरायार हर घर तिरा हर घर में काशाना तिरा
हाजत हरम की है न सनम-ख़ाना चाहिएज़ौक़-ए-सुजूद को दर-ए-जानाना चाहिए
इ'श्क़-ए-हुस्न-ए-नमकीन का जो उठाना है मज़ापहले कुछ ज़ाइक़ा-ए-ज़ख़्म-ए-जिगर पैदा कर
सर झुकाया तो पत्थर सनम बन गए 'इश्क़ भटका तो ख़ुद आश्ना हो गयारश्क करता है का'बा मेरे कुफ़्र पर मैं ने जिस बुत को पूजा ख़ुदा हो गया
सनम तेरे 'इश्क़ में अब हुई हासिल है रुस्वाईकोई कहता है दीवाना कोई कहता है सौदाई
नज़्अ' में हम हैं ग़म-ए-इ'श्क़ ये चलाता हैदेख ग़ुर्बत में मुझे छोड़ न मरने वाले
'ग़ुलाम'-ए-सनम को फ़ना फिर बक़ा मेंकि बानी मबानी सनम ही सनम है
ऐ सनम तुझ को हम भुला न सकेदिल से दाग़-ए-वफ़ा मिटा न सके
मुझ को हर वक़्त है लज़्ज़त-ए-दीदार-ए-सनममेरी नज़रों के लिए ऐसा सहारा हो जा
अपने बेगाने हुए दोस्त बने दुश्मन-ए-जाँ ख़ून का प्यासा है जहाँऐ सनम तू ही मिरी शक्ल से बेज़ार नहीं एक आ'लम है ख़फ़ा
फँसा जब से दिल-ए-शैदा सनम की ज़ुल्फ़-ए-पेचाँ मेंबसर होती है हर शब एक ही ख़्वाब-ए-परेशाँ में
ये दिल अब सनम से लगा चाहता हैख़ुदा राम अपना हुआ चाहता है
लाल मूबाफ़ सनम गेसू-ए-शब-गूँ में न डालख़ून हो जाएगा दो चार मुसलमानों का
का'बे में बस गया है सनम किस के वास्तेख़ुद बुत-कदा बना है हरम किस के वास्ते
दिल में समद समद हो ज़बाँ पर सनम सनमहुस्न-ए-अमल की भी हो झलक कुछ गुनाह में
दिल हम ने सनम को दिया नज़्राना समझ करज़ालिम ने जलाया हमें परवाना समझ कर
इ'श्क़-ए-मिज़्गाँ में कहाँ सूरत-ए-आराम 'अमीर'नींद उड़ जाएगी बिस्तर पे जो काँटा होगा
सहन-ए-हरम-ओ-कू-ए-सनम छोड़ दिया हैहर दर को तिरे दर की क़सम छोड़ दिया है
है हयात-ए-अबदी दोनों में लेकिन ख़िज़्रआब-ए-ख़ंजर का मज़ा चश्मा-ए-हैवाँ में नहीं
Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi
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