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कलाम
ज़ुहूर-ए-नूर-ए-रहमत है तमाम अतराफ़ का'बा मेंक़लम क्या ख़ाक उठाएगा कोई औसाफ़ का'बा में
हाजी वारिस अली शाह
कलाम
हुस्न जब मक़्तल की जानिब तेग़-ए-बुर्राँ ले चला'इश्क़ अपने मुजरिमों को पा-ब-जौलाँ ले चला
हसन रज़ा बरेलवी
कलाम
हुस्न-ए-मुत्लक़ का अज़ल के दिन से मैं दीवाना थाला-मकाँ कहते हैं जिस को वो मिरा काशाना था
अमीर मीनाई
कलाम
उस के चेहरे पे ख़ुदा जाने ये कैसा नूर थावर्ना ये दीवानगी कब इ'श्क़ का दस्तूर था
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
कलाम
हुस्न की ख़्वाबीदा महफ़िल को जगा देता हूँ मैंकिस बुलंदी से ख़ुदा जाने सदा देता हूँ मैं
माहिरुल क़ादरी
कलाम
इ'श्क़ की इब्तिदा भी तुम हुस्न की इंतिहा भी तुमरहने दो राज़ खुल गया बंदे भी तुम ख़ुदा भी तुम