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चेहरा पर अशआर

चादर से मौज के छुपे चेहरा आप का

बुर्क़ा हबाब का हो बुर्क़ा हबाब का

शाह नियाज़ अहमद बरेलवी

उस का चेहरा कब उस का अपना था

जिस के चेहरे पर मर मिटे चेहरे

वासिफ़ अली वासिफ़

इक चेहरे से प्यार करूँ मैं इक से ख़ौफ़ लगे है मुझ को

इक चेहरा इक आईना है इक चेहरा पत्थर लगता है

वासिफ़ अली वासिफ़

चेहरे पे जो तेरे नज़र कर गया

जान से वो अपनी गुज़र कर गया

ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़

नुक्ता-ए-ईमान से वाक़िफ़ हो

चेहरा-ए-यार जा-ब-जा देखा

शाह नसीर

हाय क्या अंधेर है कैसी ये चेहरा की चमक

सामने तो सब के फिर महरूम सब दीदार से

शम्शाद लखनवी

अपना बे-ख़ुद मुझे लिल्लाह बना ले साक़ी

बुर्क़ा’ फिर चेहरा-ए-अनवर से हटा ले साक़ी

दर्द काकोरवी

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