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Sufinama

गरेबान पर अशआर

अपने हाथों के भी मैं ज़ोर का दीवाना हूँ

रात दिन कुश्ती ही रहती है गरेबान के साथ

ख़्वाजा मीर दर्द

औरों के ख़यालात की लेते हैं तलाशी

और अपने गरेबान में झाँका नहीं जाता

मुज़फ़्फ़र वारसी

ज़ब्त-ए-दिल ये कैसी क़यामत गुज़र गई

दीवानगी में चाक गरेबान हो गया

फ़ना बुलंदशहरी

गुलों की तरह चाक का बहार

मुहय्या हर इक याँ गरेबान है

ख़्वाजा मीर असर

गुलू-गीर है उन भवों का तसव्वुर

गरेबान में अपने कंठा नहीं है

आसी गाज़ीपुरी

उस पर्दे में तो कितने गरेबान चाक हैं

वो बे-हिजाब हों तो ख़ुदा जाने क्या हो

बेदम शाह वारसी

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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