उम्मीद पर अशआर
उम्मीदः उम्मीद का लुग़वी
मा’नी आस, उम्मीद और इंतिज़ार वग़ैरा होता है।तसव्वुफ़ में महबूब-ए-हक़ीक़ी या’नी ज़ात-ए-जल्ला-व-अ’ला को भी उम्मीद कहते हैं। तजल्ली-ए-रूह को भी उम्मीद कहा जाता है।
सितमगर तुझ से उम्मीद-ए-करम होगी जिन्हें होगी
हमें तो देखना ये था कि तू ज़ालिम कहाँ तक है
ऐ चश्म-ए-तमन्ना तिरी उम्मीद बर आए
उठता है नक़ाब-ए-रुख़-ए-जानाना मुबारक
उम्मीद नहीं अब कश्ती-ए-दिल साहिल पे सलामत जा पहुँचे
दरिया-ए-अलम भी बाढ़ पे है अश्कों की जुदा तुग़्यानी है
दिल में जो रहते थे उम्मीद की दुनिया हो कर
वो चले जाते हैं क्यूँ दाग़-ए-तमन्ना हो कर
बुतों से हम हुसूल-ए-सब्र की उम्मीद क्यूँ रखें
ये क्या देंगे ख़ुदा के पास से ख़ुद ना-सुबूर आए
उन से उम्मीद-ए-वस्ल ऐ तौबा
वो तो सूरत दिखा नहीं सकते
हाथ से इ’श्क़ के बचने की तो उम्मीद नहीं
सीना अफ़गार है दिल ख़ूँ है जिगर पानी है
दीवानगी हो अ’क़्ल हो उम्मीद हो कि यास
अपना वही है वक़्त पे जो काम आ गया
गया फ़ुर्क़त का रोना साथ उम्मीद-ओ-तमन्ना के
वो बेताबी है अगली सी न चश्म-ए-ख़ूँ-चकाँ मेरी
कसरत-ए-उम्मीद भी ऐश-आफ़रीं होने लगी
इंतिज़ार-ए-यार भी राहत-फ़ज़ा होने लगा
ज़ीस्त मेरी और ये अय्याम-ए-फ़िराक़
ऐ उम्मीद-ए-वस्ल तेरा काम है
अ’ज़ीज़ों से उम्मीद 'मुज़्तर' फ़ुज़ूल
तवक़्क़ो की दुनिया फ़ना हो गई
न थी उम्मीद हमदर्दी की जिन से
वही तक़दीर से हमदर्द निकले
डरता ही रहे इंसाँ इस से उम्मीद गर है बख़्शिश की
हैं नाम इसी के ये दोनों ग़फ़्फ़ार भी है क़हहार भी है
तुझी से नक़्श-ए-नाकामी में हैं उम्मीद के जल्वे
शब-ए-ग़म है क़ज़ा के भेस में मेरा मसीहा तू
बड़ी दरगाह का साइल हूँ 'हसरत'
बड़ी उम्मीद है मेरी बड़ा दिल
सुकून-ए-क़ल्ब की उम्मीद अब क्या हो कि रहती है
तमन्ना की दो-चार इक हर घड़ी बर्क़-ए-बला मुझ से
फ़रहाद किस उम्मीद पे लाता है जू-ए-शीर
वाँ ख़ून की हवस है नहीं आरज़ू-ए-शीर
अब तो नज़र में दौलत-ए-कौनैन हेच है
जब तुझ को पा लिया दिल-ए-उम्मीद-वार ने
क़ासिद की उम्मीद है यारो क़ासिद तो आ जाएगा
लेकिन हम उस वक़्त न होंगे जब उन का ख़त आएगा
उठेगा यहाँ फिर न कभी शोर-ए-तमन्ना
दिल बीच यही यास अब उम्मीद करे है
वफ़ा की हो किसी को तुझ से क्या उम्मीद ओ ज़ालिम
कि इक आलम है कुश्त: तेरी तर्ज़-ए-बेवफ़ाई का
मैं तिरी उम्मीद में हस्ती मिटा कर मिट गया
अब तो इक ठोकर लगा दे पा-ए-जानाना मुझे
मैं हमेशा असीर-ए-अलम ही रहा मिरे दिल में सदा तेरा ग़म ही रहा
मिरा नख़्ल-ए-उम्मीद क़लम ही रहा मेरे रोने का कोई समर न मिला
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere