ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत शाह फ़रीदुद्दीन अहमद चिश्ती
कमालाबाद अल-मा’रूफ़ ब-काको अपनी क़दामत और हिदायत-ओ-लियाक़त के लिहाज़ से हमेशा मुमताज़ रह है। यहाँ मशहूर वलिय्या हज़रत मख़्दूमा बी-बी हद्या अ’ल-मारूफ़ ब-कमाल क़ुद्दिसा सिर्रहा का आस्ताना-ए-मुतबर्रका मुल्क भर में मशहूर है। कसरत से बंदगान-ए-ख़ुदा इस दर पे आ कर मन की मुराद पाकर ब-खु़शी वापस होते हैं। ये जगह हज़रत बी-बी कमाल की दामन-ए-मोहब्बत में आबाद-ओ-शाद है। इस क़स्बा (काको)के अव्वल बुज़ुर्ग हज़रत शैख़ सुलैमान लंगर ज़मीन इब्न-ए- मख़्दूम शैख़ अ’ब्दुल अ’ज़ीज़ मनेरी इब्न-ए-फ़ातिह-ए-बिहार हज़रत इमाम मोहम्मद ताज फ़क़ीह हैं। ये हज़रत बी-बी कमाल के शौहर और हज़रत मख़्दूम-ए-जहाँ के अ’म्मी अल-मुकर्रम हैं। यहाँ बेशतर औलिया-ओ-अस्फ़िया की मुक़द्दस जमाअ’त क़दीम अ’ह्द से मौजूद है।क़दीम अ’ह्द में सिलसिला-ए-क़ादरिय, फ़िर्दौसिया के अ’लावा सिलसिला-ए-चिश्तिया और अबुल-उ’लाइया का ज़ोर ख़ूब रहा। विलायत-ओ-हिदायत,करामत -ओ-मा’रिफ़त,लियाक़त-ओ-सलाबत और तहक़ीक़-ओ-तदक़ीक़ के हर शो’बा-ए-हयात से यहाँ का तअ’ल्लुक़ रहा है। इस की अ’ज़्मत-ओ-बुलंदी से मुतअ’ल्लिक़ तमाम मकतब-ए-फ़िक्र के दानिश्वरों का इत्तिफ़ाक़ है,बल्कि किसी ज़माने में ये जगह अ’ज़ीमाबाद (पटना) का मर्कज़-ओ-मेह्वर हुआ करता था।
ग्यारहवीं सदी हिज्री के अवाख़िर में हज़रत मौलाना सय्यद शाह अ’ब्दुलग़नी मुजद्ददी (मुतवफ़्फ़ा1146हिज्री) साहिब-ए-विलायत-ओ-मा’रिफ़्त बुज़ुर्ग गुज़रे हैं। आपकी करामत और उ’लू –ए-मर्तबत आज भी ज़बान-ज़द-ए-आ’म है।आपने अपने नानिहाल मौज़ा’ ‘काको’ को मस्कन बनाकर तब्लीग़-ओ-रुश्द-ओ-हिदायत का काम अंजाम दिया। आपकी औलाद में एक सूफ़ी साफ़ी बुज़ुर्ग हज़रत शाह फ़रीदुद्दीन चिश्ती चौदहवीं सदी हिज्री के मक़्बूल-ए-ज़माना बुज़ुर्ग गुज़रे हैं। आपने काको में ख़ानक़ाह की बुनियाद रखी और बंदगान-ए-ख़ुदा को एक अल्लाह की इ’बादत और बंदों का ख़िदमत का ज्ज़बा और वलवला दिलाया। ख़ानक़ाह-ए-फ़रिदिया वाहिद ऐसी क़दीम जगह है जो आज भी काको में ज़मीनी सतह पर मौजूद है ,वगर्ना दीगर के हालात-ओ-कमालात आज सिर्फ़ कुतुब-ओ-रसाइल में मौजूद हैं।
हज़रत शाह फ़रीदुद्दीन अहमद चिश्ती की पैदाइश 7 रमज़ानुल-मुबारक 1300 हिज्री मुवाफ़िक़ 11 जुलाई 1882 ई’स्वी में अपने नानिहाल मुफ़्ती गंज (ज़िला जहानाबाद) में हुई। नाम फ़रीदुद्दीन और तारीख़ी नाम मोहम्मद फ़ज़लुर्रहमान है। आपके वालिद-ए-माजिद मोहम्मद हमीदुद्दीन एक बुलंद ख़याल और पाक तीनत इन्सान थे। गर्वनमेंट मुलाज़मत के बा’द बिल्कुल ख़ाना-नशीं हो गए।आपकी महल-ए-ऊला ला-वलद इंतिक़ाल कर गईं इसलिए दूसरा निकाह हक़ीक़ी हम-ज़ुल्फ़ मीर अफ़ज़ल हुसैन (मुफ़्ती गंज)की लड़की मुस्मात अ’ज़ीज़ुन-निसा से अंजाम पाया,मगर चंद ही बरस के बा’द इख़्तिलाज-ए-क़ल्ब में मुब्तला रह कर 29 ज़ील-हज्जा 1307 हिज्री को रिहलत कर गए, इसलिए आपके फ़र्ज़द फ़रीदुद्दीन अहमद का कम-सिनी में ज़ियादा वक़्त अपने नानिहाल में गुज़रा। आपके ख़ालू मोहतरम सय्यद मुहीउद्दीन आपको बे-हद अ’ज़ीज़ रखते। शुरूअ’ से कम-सुख़न और उ’म्दा मिज़ाज के मालिक थे। ख़ानदान के मुक़्तदिर बुज़ुर्गों से ता’लीम-ओ-तर्बियत हासिल किया करते। रूहानियत और इ’र्फ़ानियत की जानिब आ’ला ज़ौक़ रखते।तारीख़-ओ-तज़्किरा के दिल-दादा थे इस तरह एक अ’र्सा बा’द आप क़ा ज़ाती कुतुब-ख़ाना लोगों के लिए सैर-बख़्श हुआ। साहिब-ए-आ’सार-ए-काको आपकी इ’ल्म-दोस्ती से मुतअ’ल्लिक़ रक़म-तराज़ हैं कि और इसी तरह बिरादरम सय्यद शाह फ़रीदुद्दीन को भी किताबों का बड़ा ज़ौक़ था और उन्होंने भी शोअ’रा के दवावीन-ओ-कुल्लियात नीज़ बुज़ुर्गान-ए-दीन के अहवाल-ओ-असार पर जो किताबें थीं उस का अच्छा-ख़ासा ज़ख़ीरा था ।
आ’लम-ए-शबाब ही से आपके मिज़ाज में सह्व-ओ-सुक्र का ग़लबा-ओ-दबदबा रहा है।दिल में मज़हबी जोश-ओ-वल्वला ब-दर्जा-ए-अतम था।तबीअ’त में इ’श्क़-ओ-मोहब्बत का सोज़-ओ-गुदाज़ था। चेहरा पर हिल्म,ज़बान में हलावत और नर्मी ने तस्ख़ीर-ए-आ’लम की कैफ़ियत पैदा कर दी थी।गुफ़्तुगू बड़ी पुर-कशिश होती । जो एक मर्तबा महफ़िल-ए-लतीफ़ में बैठता वो आपकी गुफ़्तुगू का दिल-दादा होता। सख़ावत-ओ-फ़य्याज़ी का ये आ’लम कि जिसने जो तलब किया आपने उस को दे दिया । न कभी रुपया आने की ख़ुशी होती और न जाने का ग़म जो आता वो सब लोगों पर सर्फ़ कर देते। फ़राख़-दिली और सख़ावत आप का पसंदीदा अ’मल था। आख़िर वक़्त में क़नाअ’त को अपना ज़ेवर बना लिया।मिज़ाज में नफ़ासत-पसंदी,ख़ुश-शाइस्तगी और मतानत-ओ-संजीदगी थी ।
आप शुरूअ’ से रूहानियत की जानिब माइल रहे। एक रोज़ किसी महफ़िल में हज़रत सय्यद शाह अमीन अहमद फ़िर्दौसी शौक़ बिहारी मुतवफ़्फ़ा 1321 हिज्री (सज्जादा नशीं ख़ानक़ाह-ए-मुअ’ज़्ज़म हज़रत मख़्दूम-ए-जहाँ,बिहारशरीफ़) की ज़ियारत का शरफ़ हासिल हुआ। निगाह-ए-शैख़ में ऐसी तासीर देखी कि बिलकुल उस इ’श्क़ में क़ैद हो कर रह गए।ज़िंदगी के बदलते हुए सफ़र के साथ बे-चैनी और बे-क़रारी भी बढ़ने लगी कि एक रोज़ ख़ानक़ाह-ए-मुअ’ज़्ज़म (बिहारशरीफ़) का रुख़ किया और मुरीद होने की दरख़्वास्त ज़ाहिर की ।जनाब हुज़ूर ने फ़रमाया कि ‘आप में चिश्तियत की बू आती है’ और साल 1316 हिज्री 1898 ई’स्वी में सिलसिला-ए-चिश्तिया में बैअ’त कर के अपने लायक़-ओ-फ़ाइक़ साहिब-ज़ादे हज़रत सय्यद शाह वसीअ’ अहमद फ़िर्दौसी उ’र्फ़ बराती क़ुद्दिसा सिर्रहु (मुतवफ़्फ़ा 1352 हिज्री ) की तरफ़ मुतवज्जिह किया ।
आपने तसव्वुफ़ की ता’लीम सिलसिला-ए-अबुल-उ’लाइया के निसाब पर मुकम्मल कराई। ता’लीम-ओ-इर्शाद का सिलसिला काफ़ी दिनों तक क़ाएम रहा यहाँ तक कि बातिनी ने’मतों से मुशर्रफ़ हो कर इजाज़त-ओ-ख़िलाफ़त से नवाज़े गए। मुर्शिद-ए-करीम के हुक्म से काको में रुश्द-ओ-हिदायत का सिलसिला क़ायम किया और बंदगान-ए-ख़ुदा को ता’लीम-ओ-तल्क़ीन और अख़्लाक़-ओ-इख़्लास का दर्स देने पर मामूर हुए। आप में आ’जिज़ी-ओ-फ़िरोतनी ख़ूब थी।ज़ियादा-तर अफ़राद को सिलसिला-ए-चिश्तिया में बैअ’त करते। हल्क़ा-ए-मुरीदान,मो’तक़िदान और मुतवस्सिलान-ए-जहानाबाद,गया और उस के अतराफ़-ओ-अक्नाफ़ में ब-कसरत पाया जाता है।
इब्तिदाई उ’म्र से हज़रत मख़्दूमा बी-बी कमाल की तरफ़ तबीअ’त माइल रही।आस्ताना-ए-कमाल के अतराफ़-ओ-अकनाफ़ में कभी जूतियाँ नहीं पहनते । हमेशा इन्किसारी और ख़ाकसारी के साथ हाज़िर हो कर अपनी गु़लामी का सुबूत पेश किया करते। ग़ायत दर्जा की निस्बत-ओ-अ’ज़्मत आप में पाई जाती। कभी आस्ताना-ए-कमाल में जुलूस नहीं करते ।हमेशा क़ियाम की हालात में रहते।हज़रत मख़्दूमा की तरह हज़रत मख़्दूम-ए-जहाँ शैख़ शर्फ़ुद्दीन अहमद यहया मनेरी क़ुद्दिसा सिर्रहु मुतवफ़्फ़ा 782 हिज्री से कमाल-ए-मोहब्बत थी।तहज़ीब के साथ हाज़िर होते और अपनी अ’ज़मत पे नाज़ाँ होते।हज़रात-ए- मशाइख़-ए-चिश्तिया के हज़रत सय्यद अमीर अबुल-उ’ला मुतवफ़्फ़ा 1061 हिज्री से बा-कमाल निस्बत थी क्यूँकि जिस शैख़ के मय-कदा से आप सैराब-ए-इ’ल्म-ओ-अ’मल हुए उस पर अबुल-उ’लाइया निस्बत ग़ालिब थी।ता’लीम-ओ-तर्बियत के दौरान ऐसा नशा चढ़ा कि वतन से आगरा आए और हज़रत सय्यद शाह मोहम्मद मोहसिन अबुल-उ’लाई दानापुरी मुतवफ़्फ़ा 1364 हिज्री (सज्जादा नशीं ख़ानक़ाह-ए-सज्जादिया,दानापुर)की रिफ़ाक़त में कई रोज़ आस्ताना-ए-मुतबर्रका में मुराक़बा किया।
आपकी ज़ाती ज़िंदगी का रुख़ करें तो मा’लूम होता है कि आपका पहला निकाह अपने ख़ालू मोहतरम सय्यद मुहीउद्दीन (मुफ़्ती गंज )की साहिब-ज़ादी मुस्मात बी-बी ज़ैनब से हुआ। मौसूफ़ा नेक-ख़स्लत की पाकीज़ा ख़ातून थीं। इ’फ़्फ़त-ओ-पार्साई और अंदाज़-ओ-अत्वार में बे-मिस्ल थीं।ज़िंदगी ने ज़ियादा वफ़ा न की इसलिए 1336 हिज्री में जाँ-ब-हक़ हुईं। मौलाना हाफ़िज़ अ’ब्दुस्सुब्हान साहिब साकिन मुर्ग़िया चक ज़िला नालंदा (मुरीद-ओ-तिल्मीज़ हज़रत नूर मोहम्मद देहलवी) ने आपका तारीख़-ए-विसाल इस मिस्रअ’ से निकाला है-
‘जन्नतुल-फ़िर्दौस मक़ाम-ए-अबदी शुद’ 1336 हिज्री।
महल-ए-ऊला से एक दुख़्तर (मंसूब सय्यद मंज़ूरुर्रहमान अख़तर काकवी ख़लफ़ सय्यद शाह ग़फ़ूरुर्रहमान अबुल-उ’लाई हम्द काकवी)और एक साहिब-ज़ादे जनाब सय्यद शाह ग़ुलाम मुनइ’म अल-मा’रूफ़ वली-उल-हक़ चिश्ती जिनका अ’क़्द मौज़ा’ कोपा (ज़िला पटना)में हुआ, मगर कोई औलाद नहीं। वाज़िह हो कि आपको बैअ’त-ओ-इजाज़त-ओ-ख़िलाफ़त हज़रत शाह वसीअ’ अहमद फ़िर्दोसी से है।महल-ए-ऊला की रिहलत के बा’द दूसरा अ’क़्द 1343 हिज्री 1924 ई’स्वी में सय्यद अ’ज़ीमुद्दीन (मीरदाद,बिहारशरीफ़) की लड़की मुस्मात बी-बी शकूरन नेक सीरत ,अख़लाक़-मंद औ’रत से हुआ। आपको बैअ’त सिलसिला-ए-फ़िर्दौसिया में हज़रत शाह अबुल-हसनात फ़िर्दौसी से थी।पीर-परस्त और ख़ुदा रसीदा ख़ातून थीं। आप का विसाल 11 ज़ीक़ाअ’दा को हुआ। इन से दो साहिब-ज़ादे सय्यद शाह ग़ुलाम मुई’नुद्दीन चिश्ती और समीअ’ अहमद (ये लड़का कम-सिनी में फ़ौत कर गया) हुए।
ज़िंदगी की आख़िरी उ’म्र तक आप अपने मुआ’मलात को ख़ुद अंजाम देते। ज़ो’फ़ की वजह से ज़ियादा वक़्त हुज्रा में गुज़रता । बिलकुल अपने वालिद की तरह ख़ाना-नशीन हो गए। जब जुम्आ’ की नमाज़ से फ़ारिग़ हुए तो कैफ़ियत तब्दील होनी शुरूअ’ हो गई और 74 बरस की उ’म्र में शब-ए-जुम्आ’ 1बजे 20 रबीउ’स्सानी 1374 मुवाफ़िक़ 15 दिसंबर 1954 ई’स्वी को अपने हुज्रा में राही-ए-मुल्क-ए-बक़ा हुए। लिहाज़ा अपने जद्द-ए-अमजद हज़रत शाह अ’ब्दुलग़नी चिश्ती के मज़ार-ए-मुक़द्दस के पाईं दफ़्न हुए।सय्यद ग़ुलाम मुई’ज़ुद्दीन बल्ख़ी आ’सी (साकिन:दीघा,दानापुर) ने ‘आह पीर-ए-तरीक़त उठ गया’से 1374 हिज्री बरामद किया है।
इस तरह आपके ख़्वेश मोहतरम मंज़ूरुर्रहमान अख़्तर काकवी भी कई क़तअ’-ए-तारीख़-ए-रिह्लत रक़म कर चुके हैं,जो ख़ानक़ाह-ए-सज्जिदया के कुतुब-ख़ाना में मौजूद हैं। इस शे’र से तारीख़-ए-विसाल ज़ाहिर हो रही है:
सय्यद वासिल ब-हक़्क़-ए-शाह फ़रीद जन्नती
‘‘नज़्द नबी-ओ-अस्फ़िया शाह फ़रीद जन्नती (1374हिज्री)
आपका उ’र्स ख़ानक़ाह-ए-फ़रिदिया ये मोहल्ला शाह टोली,काको में एहतिमाम-ओ-इंसिराम के साथ हर साल अंजाम पाता है। वाबस्तगान-ए-फ़रीदिया अतराफ़-ओ-जवानिब से हाज़िर हो कर सलाम-ओ-नियाज़ पेश करते हैं और ख़ुलूस-ए-निय्यत के साथ मन की मुराद पाकर वापस होते हैं।आपकी रिह्लत के बा’द बड़े साहिब-ज़ादे हज़रत शाह वलीउल-हक़ चिश्ती (तारीख़-ए-रिह्लत 12 ज़ीक़ा’दा ब-रोज़-ए-शंबा 1417 हिज्री) जां-नशीन हुए। चूँकि ला-वलद रहे इसलिए अपनी ज़िंदगी ही में अपने छोटे भाई हज़रत शाह ग़ुलाम मुई’नुद्दीन चिश्ती (तारीख़-ए-रिह्लत 26 ज़ील-हिज्जा 1400 हिज्री )को सज्जादगी पर मामूर कर दिया। मौजूदा सज्जादा-नशीं आपके बड़े साहिब-ज़ादे जनाब सय्यद शाह अ’ली अहमद चिश्ती साहिब हैं।
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.