Sufinama

ताजदार-ए-हरम हो निगाह-ए-करम

हकीम मिर्ज़ा मदनी

ताजदार-ए-हरम हो निगाह-ए-करम

हकीम मिर्ज़ा मदनी

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    क़िस्मत में मिरी चैन से जीना लिख दे

    डूबे कभी मेरा सफ़ीना लिख दे

    जन्नत भी गवारा है मगर मेरे लिए

    कातिब-ए-तक़दीर मदीना लिख दे

    ताजदार-ए-हरम हो निगाह-ए-करम

    हम ग़रीबों के दिन भी सँवर जाएँगे

    ताजदार-ए-हरम हो निगाह-ए-करम

    चश्म-ए-रहमत ब-कुशा सू-ए-मन अंदाज़-ए-नज़र

    क़ुरैशी लक़बी हाशमी-ओ-मुत्तलबी

    ताजदार-ए-हरम हो निगाह-ए-करम

    या रसूल-अल्लाह ब-अहवाल-ए-ख़याल मा बीं

    रू-ब-पा उफ़्तादा अम अज़ शर्म-ए-'इस्याँ रा मतीं

    बहर मी चूँ मन न-बाशद दर तमामी उम्मतत

    रहम कुन बर हाल-ए-मा या रहमतुल-लिल-'आलमीं

    ताजदार-ए-हरम हो निगाह-ए-करम

    का तुम से कहूँ 'अरब के कँवर तुम जानत हो मन की बतियाँ

    दर्द-ए-फ़ुर्क़त तु उम्मी लक़ब काटे कटत है अब रतियाँ

    तोरी प्रीत में सुध-बुध सब मेरी कब तक ये रहेगी बे-ख़बरी

    गाहे ब-फ़िगन दुज़्दीदा-नज़र कभी सुन भी लो हमरी बतियाँ

    ताजदार-ए-हरम हो निगाह-ए-करम

    ताजदार-ए-हरम हो निगाह-ए-करम हम ग़रीबों के दिन भी सँवर जाएँगे

    हामी-ए-बे-कसाँ क्या कहेगा जहाँ आप के दर से ख़ाली अगर जाएँगे

    कोई अपना नहीं ग़म के मारे हैं हम आप के दर पे फ़रियाद लाए हैं हम

    हो निगाह-ए-करम वर्ना चौखट पे हम आप का नाम ले के मर जाएँगे

    मय-कशो आओ मदीने चलें आव मदीने चलें आओ मदीने चलें

    दुख दर्द-ओ-अलम सब छटते हैं हसनैन के सदक़े बटते हैं

    मदीने चलें आओ मदीने चलें

    तजल्लियों की 'अजब है फ़ज़ा मदीने में

    निगाह-ए-शौक़ की इंतिहा है मदीने में

    ग़म-ए-हयात ख़ौफ़-ए-फ़ज़ा मदीने में

    नमाज़-ए-'इश्क़ करेंगे अदा मदीने में

    इधर उधर भटकते फिरो ख़ुदा के लिए

    बराह-ए-रास्त है राह-ए-ख़ुदा मदीने में

    मदीने चलें आओ मदीने चलें

    मय-कशो आओ मदीने चलें दस्त-ए-साक़ी-ए-कौसर से पीने चलें

    याद रक्खो अगर उठ गई इक नज़र जितने ख़ाली हैं सब जाम भर जाएँगे

    ख़ौफ़-ए-तूफ़ान है बिजलियों का है डर सख़्त मुश्किल है आक़ा किधर जाएँगे

    आप ही गर लेंगे हमारी ख़बर हम मुसीबत के मारे किधर जाएँगे

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    आतिफ असलम

    आतिफ असलम

    स्रोत :
    • पुस्तक : Pakistani Qawwalian (पृष्ठ 18)

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