ये दे देना ख़बर बाद-ए-सबा अजमेर वाले को
रोचक तथ्य
منقبت در شان غریب نواز خواجہ معین الدین چشتی (اجمیر-راجستھان)
ये दे देना ख़बर बाद-ए-सबा अजमेर वाले को
कि करता याद है इक मुब्तला अजमेर वाले को
इमाम-ए-औलिया शैख़ुल-वरा अजमेर वाले को
ज़माना कहता है नाम-ए-ख़ुदा अजमेर वाले को
'अली की बू भी है रंग-ए-नबी ख़ू थे उ'समाँ भी
जभी तो प्यार करता है ख़ुदा अजमेर वाले को
मुदावा हो नहीं सकता मेरे दर्द-ए-मोहब्बत का
मगर मा'लूम है इस की दवा अजमेर वाले को
ख़ुदा से माँगने वाले यहीं से माँग लेते हैं
ख़ुदाई उस ने कर दी है 'अता अजमेर वाले को
चली आती है ख़ाक-ए-पाक से ख़ुश्बू मदीना की
मुबारक क़ुर्ब-ए-महबूब-ए-ख़ुदा अजमेर वाले को
कभी भटका नहीं वो मंज़िल-ए-मक़्सूद तक पहुँचा
बनाया जिस ने अपना रहनुमा अजमेर वाले को
तवज्जोह ख़ास रहती है ग़ुलाम-ए-बुलउलाई पर
पसंद आया हुस्न अगर अजमेर वाले को
अगर 'मसऊ'द' मौक़ा' ख़्वाब ही में मुझ को मिल जाए
सुनाऊँ शाम-ए-ग़म का माजरा अजमेर वाले को
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