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सूफ़ी लेख
बेदम शाह वारसी और उनका कलाम
अमीर-ए-शहर-ए-विलायत करीम इब्न-ए-करीमतमाम ख़ल्क़ के हाजत-रवा की चादर है
सुमन मिश्रा
शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
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सूफ़ी कहानी
शाही मुनादी सुनकर दल्क़क मस्ख़रे का गांव से शहर को दौड़ना - दफ़्तर-ए-शशुम
बादशाह-ए-तिरमिज़ के पास एक मस्ख़रा दल्क़क बादशाह का बहुत चहेता था। एक-बार रुख़्सत लेकर अपने गांव
रूमी
ना'त-ओ-मनक़बत
हयात-अफ़्ज़ा निगार-ए-शहर-ए-सरकार-ए-मदीना हैसहाब-ए-रहमत-ए-बारी यहाँ हर दम बरसता है
वासिफ़ रज़ा वासिफ़
ना'त-ओ-मनक़बत
शहर-ए-ख़्वाजा में हूँ अपना तो गुलिस्ताँ है यहीबाग़-ए-जन्नत है यही रौज़ा-ए-रिज़वाँ है यही
मोहम्मद हाशिम ख़ान
ना'त-ओ-मनक़बत
क्यूँ न हो हर-सम्त शहर ख़्वाजा-ए-अजमेर काहिन्द के दिल पर है क़ब्ज़ा ख़्वाजा-ए-अजमेर का
ज़फ़र अंसारी ज़फ़र
दोहरा
किबला ख़्वाजा नूर मुहमद साहब शहर मुहारां ।
क़िबला ख़्वाजा नूर मुहमद साहब शहर मुहारां ।हिन्द सिंध पंजाब दे विच्च चा कीतो फैज़ हज़ारां ।
ख़्वाजा ग़ुलाम फ़रीद
कलाम
तन मैं यार दा शहर बणाया दिल विच ख़ास मोहल्ला हूआण अलिफ़ दिल वस्सों कीती होई ख़ूब तसल्ला हू
सुल्तान बाहू
सूफ़ी कहानी
अमीर-ए-बुख़ारा के ग़ुलाम का फ़रार होना और वापस आना - दफ़्तर-ए-सेउम
एक अ’जीब क़िस्सा सुनो कि सदर-ए-जहाँ अमीर-ए-बुख़ारा का एक परवर्दा ग़ुलाम जिस क़दर अपने आक़ा को