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दकनी सूफ़ी काव्य
जेकूमनामा
करूँगा विलायत को सारा उजाड़जमीं पर न बाक़ी रहे कोई पहाड़
फ़ज़ल बिन मोहम्मद अमीन
सूफ़ी लेख
रैदास और सहजोबाई की बानी में उपलब्ध रूढ़ियाँ- श्री रमेश चन्द्र दुबे- Ank-2, 1956
(2) पाँचौ करै उजाड़ पचीसौं चरि चरि जाईं।(3) बार बार नाते मिलै लख चौरासी माहिं।।
भारतीय साहित्य पत्रिका
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पद
कहैं ‘कबीर’ सुनो हो साधो अमृत-बचन हमार
कोहि गावौ कोहि धावहू छोड़ो सकल धमारयह हिरदे सब को बसे क्यूँ सेवो सुन्न-उजाड़
कबीर
कलाम
ख़ुदा जाने तिरा जी लग गया दुनिया में क्यूँ ऐ दिलउजाड़ इक चंद घर हैं बे-हक़ीक़त सी ये बस्ती है
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
ख़्वाजा शायान हसन
सूफ़ी लेख
शैख़ सलीम चिश्ती
जिस वक़्त अकबर को ये इत्तिलाअ’ हुई ख़ुशी से जामा में न समाया और फ़तहपुर हाज़िर
ख़्वाजा हसन निज़ामी
क़िस्सा
क़िस्सा चहार दर्वेश
मैं ने दिल में कहा, यह महल बादशाहों के लायक़ है। जिस वक़्त तैयारी इसकी हुई