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फ़ारसी कलाम
ब-शिनो कि हर ज़माँ ब-ख़ुश-इलहानी-ए-‘स’ईद’गोयन्द उम्मती-ए-मोहम्मद 'अली-'अली
शैख़ अबु सईद सफ़वी
नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
हाथ बे-ज़ोर हैं इल्हाद से दिल ख़ूगर हैंउम्मती बाइस-ए-रुस्वाई-ए-पैग़म्बर हैं
अल्लामा इक़बाल
ना'त-ओ-मनक़बत
रब्बि-हब्ली उम्मती की है सदा गूँजी हुईहश्र में हम बख़्शे जाएँगे नबी के वास्ते
उवेस रज़ा अम्बर
ना'त-ओ-मनक़बत
गर्मी-ए-मह्शर से जब बेचैन होंगे उम्मतीअब्र बन कर छाएँगे गेसू-ए-सुल्तान-ए-जमाल
अमीर हमज़ा निज़ामी
ना'त-ओ-मनक़बत
ये मंसब बादशाहों के मुक़द्दर में कहाँ 'ख़ालिद'नबी के उम्मती तुम हो ग़ुलाम-ए-मुस्तफ़ा तुम हो
ख़ालिद नदीम बदायूँनी
ना'त-ओ-मनक़बत
सदा-ए-रब्बि-हब्ली उम्मती ज़ीना है जन्नत काये लाली हम सिह कारों की शाह-ए-मुरसिलाँ तक है
तल्हा रिज़वी बरक़
ना'त-ओ-मनक़बत
खुला है दफ़्तर-ए-’इस्याँ ग़ज़ब पर हक़ ता'ला हैख़ुदा और उम्मती के दरमियाँ इक कमली वाला है
इश्तियाक़ आलम शहबाज़ी
ना'त-ओ-मनक़बत
रो-रो के रब से थी दु'आ सज्दे में हब्ली उम्मतीउद’ऊनी इस्तजिब लकुम पेश-ए-नज़र जो था फ़क़त
तल्हा रिज़वी बरक़
ना'त-ओ-मनक़बत
पहुँच लेगा जहाँ में जब कि एक एक उम्मती उन काकहीं उस वक़्त होगा ग़म से छुटकारा मोहम्मद का
अज्ञात
ग़ज़ल
हम उम्मती बन के तुहार आए बिगड़ी को अज़ल से सँवार आएहम तुमरे भए तुम हमरे भए जब प्रीत भई हमरी तुमरी