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दोहा
बुल्ला कसर नाम कसूर है, ओथे मूँहों ना सकण बोल ।
बुल्ला कसर नाम कसूर है, ओथे मूँहों ना सकण बोल ।ओथे सच्चे गरदन-मारीए, ओथे झूठे करन कलोल ।।
बुल्ले शाह
सतसई
।। बिहारी सतसई ।।
लगी अनलगी सी जु बिधि करी खरी कटि खीन।किए मनौ वैं हीं कसर कुच नितंब अति पीन।।664।।
बिहारी
पद
विरह के पद - हरी बिना ना सरे री माई मेरा प्राण निकस्या जात हरी बिन न सरे री माई
एक बरे दरसन दीजे सब कसर मिटि जाईपात ज्यों पीली पड़ी अरु बिपत तन छाई
मीराबाई
गीत
मदन मुरारी फाग खेलत वहाँ हम सुलगत जैसे होरी'नियाज़' तुम्हारी लीन हैं बलैयाँ कसर क्यूँ मोरी
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
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ना'त-ओ-मनक़बत
मिट्टी मिरी हो सीम-ओ-ज़र ख़ैर 'अमल की है कसरउस्वा-ए-पाक आप का नुस्ख़ा-ए-कीमिया फ़क़त
तल्हा रिज़वी बरक़
काफी
सानूँ आ मिल यार प्यारिआ
दूर दूर असाथों ग्युं अजला ते आ के बह रहउंकी कसर कसूर विसारिआ सानूँ आ मिल यार प्यारिआ
बुल्ले शाह
सूफ़ी लेख
मिस्टिक लिपिस्टिक और मीरा
परन्तु सूर में कसर थी जो मीरा से पूरी हुई। नहीं तो उसका पूरा होना असंभव
सूफ़ीनामा आर्काइव
क़िस्सा
क़िस्सा चहार दर्वेश
बादशाह यह वारदात देख कर महल में घुस गये। जवान को फिर पिंजरे में बन्द करके
अमीर ख़ुसरौ
सूफ़ी लेख
हज़रत मौलाना शाह हिलाल अहमद क़ादरी मुजीबी
“ऐन अहमद सल्लमहु तारीख़ ए विलादत 8 रमज़ान 1349 हिज्री तहसील ए उलूम में मशग़ूल हैं।
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
मौलाना जलालुद्दीन रूमी
शैख़ सलाहुद्दीन ले विसाल के पश्चात मौलाना ने शैख़ हुसामुद्दीन चिल्पी को अपना साथी बनाया। मौलाना
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
तजल्लियात-ए-सज्जादिया
अब मैं इस ख़ानक़ाह की इ’ल्म-दोस्ती की कुछ मिसालें पेश करना चाहता हूँ। बिशनपुर ज़िला’ किशनगंज
अहमद रज़ा अशरफ़ी
सूफ़ी लेख
महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
उक्त प्रेमतत्व की पुष्टि में ही सूर की वाणी मुख्यतः प्रयुक्त जान पड़ती है। रति-भाव के
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी कहानी
देहाती का शहरी को तसन्नो' से दोस्त बनाना- दफ़्तर-ए-सेउम
एक दिन ख़्वाजा के बच्चों ने कहा कि अब्बा जान चांद, बादल और साया तक हरकत
रूमी
सूफ़ी कहानी
बादशाह और कनीज़ - दफ़्तर-ए-अव्वल
सर-ए-राह एक लौंडी नज़र पड़ी कि देखते ही दिल-ओ-जान से उस का ग़ुलाम हो गया। मुँह