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दकनी सूफ़ी काव्य
मोहिउद्दीन दर मनाक़ब हज़रत अब्दुल क़ादर
खुदा के वास्ते मुज से गिना हैनबी, अल्ला, खिज़र हूँ मैं कहे तब
हुसैनी
दकनी सूफ़ी काव्य
मोहिउद्दीन नामा
कहे मैं न ले सू न मुँज कूँ गिनाअव्वल का था अव्वली च येता है मना
मोहम्मद क़ादरी
गूजरी सूफ़ी काव्य
मेरी तलाफ़ी इतनी ही तुझ से ख़ुदा करे
जो दिल न दे किसी को वह क्या दम गिना करे,बे इश्क़दिन वह उम्र के ख़ाली भरा करे।
अब्दुल वली उज़लत
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ग़ज़ल
मज़्दा-ए-वस्ल बहुत दिन से रोज़ सुना करते हैंसालहा गुज़रे कि हम रोज़ गिना करते हैं
याह्या क़ादरी फुलवारवी
सूफ़ी साहित्य
रिसाल:-ए-साहिबिया
मेरे मुर्शिद हज़रत मुल्ला शाह के ख़वारिक़-ए-आदात बेशुमार हैं और उन को गिना नहीं जा सकता।
जहाँ आरा बेगम
व्यंग्य
मुल्ला नसरुद्दीन- दूसरी दास्तान
अमीर ने वज़ीर-ए-आज़म बख़्तियार को दरबार लगाने का हुक्म दिया। महल के उस बाग़ में, जो
लियोनिद सोलोवयेव
सूफ़ी लेख
जौनपुर की सूफ़ी परंपरा
आप अपने पिता के मुरीद थे. आप अपने समय के प्रसिद्ध सूफ़ी थे. आप के कई
सुमन मिश्र
सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई-संबंधी साहित्य (बाबू जगन्नाथदास रत्नाकर, बी. ए., काशी)
राजा गोपालशरण की टीका शिवसिंहसरोज में बिहारी की टीकाओं में राजा गोपालशरण की एक प्रबंधघटना नाम की
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
क़व्वालों के क़िस्से
अज़ीज़ मियां पहले छोटी - मोटी महफ़िलों में गाया करते थे परन्तु उनकी ज़िन्दगी ने एक