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सूफ़ी उद्धरण
अगर छत गिरने लगे तो भाग जाओ और आसमान गिरने लगे तो ठहर जाओ।
अगर छत गिरने लगे तो भाग जाओ और आसमान गिरने लगे तो ठहर जाओ।
वासिफ़ अली वासिफ़
सूफ़ी शब्दावली
महाकाव्य
।। रसप्रबोध ।।
गुंज लैन तू आपु कत कुंज गई यहि काल।कटक छत नख चाहि कै चख नचाइ कै बाल।।610।।
रसलीन
सतसई
।। बिहारी सतसई ।।
गनती गनिबे तैं रहै छत हूं अछत समान।अलि अब ए तिथि औम लौं परे रहौ तन प्रान।।275।।
बिहारी
गूजरी सूफ़ी काव्य
नौ-खंड और जे असमाँ आहे
नौ-खंड और जे असमाँ आहेसब पीव छत थीं छत्ता हुआ है
शाह अली जीव गामधनी
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ना'त-ओ-मनक़बत
का'बा-ए-अतहर की छत से हज़रत-ए-रूहुल-अमीनकह रहे हैं बरमला अहलन-ओ-सहलन मर्हबा
नूरुल हसन नूर
नज़्म
सम्त-ए-काशी से चला जानिब-ए-मथुरा बादल
आतिश-ए-गुल का धुआँ बाम-ए-फ़लक पर पहुँचाजम गया मंज़िल-ए-ख़ुर्शीद की छत में काजल
मोहसिन काकोरवी
ना'त-ओ-मनक़बत
हज़रत-ए-जिब्रील ने का'बे की छत से दी सदाआ गए ख़ैर-उल-वरा अहलन-ओ-सहलन मर्हबा
महबूब गौहर इस्लामपुरी
कलाम
हम तो हैं परदेस में देस में निकला होगा चाँदअपनी रात की छत पर कितना तन्हा होगा चाँद
राही मासूम रज़ा
व्यंग्य
मुल्ला नसरुद्दीन- तीसरी दास्तान
पहला पहर बीत रहा था। गर्मी बढ़ रही थी। इस गर्मी से बेख़बर, बूढ़ा नियाज़ बहुत
लियोनिद सोलोवयेव
कलाम
ढूँढना है उस को ऐ ज़ाहिद तो अपने दिल में ढूँडछत में का'बे की न वो का'बे की दीवारों में है
अमीर मीनाई
कलाम
शाह अकबर दानापूरी
सूफ़ी लेख
बहादुर शाह और फूल वालों की सैर
जिसने पहले ज़माना का झरना नहीं देखा उसने दिल्ली में कुछ ख़ाक नहीं देखा। मा’लूम होता
मिर्ज़ा फ़रहतुल्लाह बेग
सूफ़ी लेख
हज़रत बख़्तियार काकी रहमतुल्लाहि अ’लैह - मोहम्मद अल-वाहिदी
ये अम्र अच्छी तरह तहक़ीक़ ना हो सका कि आपकी औलाद का नस्बी सिल्सिला चला या