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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
चे-गूना बर न-परद जाँ चू अज़ जनाब-ए-जलालख़िताब-ए-लुत्फ़-ए-चू शक्कर ब-जाँ रसद कि तआ’ल
रूमी
ना'त-ओ-मनक़बत
न क्यूँ ग़ायत मोहब्बत हो जनाब-ए-शाह वारिस सेमिली है 'इश्क़ की दौलत जनाब-ए-शाह वारिस से
बशीर वारसी
फ़ारसी कलाम
मकीन-ए-अ’र्श-ए-मुअज़्ज़म जनाब-ए-मुनइ'म-ए-पाकफ़रोग़-ए-ताले’-ए-आदम जनाब-ए-मुनइ'म-ए-पाक
शाह मोहसिन दानापुरी
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ना'त-ओ-मनक़बत
'अजब रुत्बा जनाब ख़्वाजा-ए-अजमेर का पायाशरी'अत में तरीक़त में शहंशाह वला पाया
हाफ़िज़ुल्लाह साबरी
नज़्म
मेरे आक़ा मेरे मुर्शिद 'बेदम'-ए-अली-जनाब
मेरे आक़ा मेरे मुर्शिद 'बेदम'-ए-अली-जनाबदर-हक़ीक़त आसमान-ए-वारसी के आफ़्ताब
हैरत शाह वारसी
ना'त-ओ-मनक़बत
जनाब-ए-पीर ने ज़िम्मा लिया है पर्द:-पोशी कामुरीद उन का किसी सूरत से रुस्वा हो नहीं सकता
कामिल शत्तारी
ना'त-ओ-मनक़बत
अज्ञात
ना'त-ओ-मनक़बत
हबीब-ए-हक़ वालि-ए-विलायत वो कौन या'नी जनाब ख़्वाजाहम करम-ए-मा'दन-ए-करामत वो कौन या'नी जनाब ख़्वाजा
कैफ़
ना'त-ओ-मनक़बत
मुझे ये सब जनाब-ए-ग़ौस के दीवाने लगते हैंये चेहरे जितने हैं सब जाने और पहचाने लगते हैं
डाॅ. रऊफ़ ज़िया
ना'त-ओ-मनक़बत
आँखों से क्यूँ न चूमूँ पा-ए-जनाब-ए-वारिसबे-वारिसों के वारिस आए जनाब-ए-वारिस
मुज़्तर ख़ैराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
गौहर है 'इल्म कान-ए-जनाब-ए-अमीर काअल्लाह रे रुत्बा शान-ए-जनाब-ए-अमीर का