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सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
यह बिपता कैसे बनी, जो नंगी कर दई नार।।-भुट्टा
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
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खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
यह बिपता कैसे बनी, जो नंगी कर दई नार।। -भुट्टा
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पहेली
तलवार
इक रानी है बीहड़ नंगी, झटपट बन जाती है जंगी ।रकत पियासी ख़ासी रहै, बासू केरि खगनिया कहै ।।
खगनिया
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ढकोसला
भादों पक्की पीपली, झड़ झड़ पड़े कपास
भादों पक्की पीपली, झड़ झड़ पड़े कपासबी मेहतरानी दाल पकाओगी या नंगी ही सो रहूँ
अमीर ख़ुसरौ
व्यंग्य
मुल्ला नसरुद्दीन- पहली दास्तान
वह अपनी फटी ख़िलअ'त पहनता जो अलाव की चिनगारियों से कई जगह जल चुकी थी और
लियोनिद सोलोवयेव
व्यंग्य
मुल्ला नसरुद्दीन- दूसरी दास्तान
उसका काम था अमीर की एक सौ साठ दाश्ताओं पर बराबर नज़र रखना और उन्हें इतना
लियोनिद सोलोवयेव
सूफ़ी लेख
ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत मख़दूम अहमद चर्म-पोश
यहीं से आपका रूहानी जलाल इस क़दर नुमायाँ हुआ कि लोग आपको "तेग़-ए-बरहना" या'नी नंगी तलवार
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
सन्यासी फ़क़ीर आंदोलन – भारत का पहला स्वाधीनता संग्राम
“हमारी अश्वारोही रक्षक सेना के अधिक दूर जाते होते ही शत्रु नंगी तलवारें हाथ में लिए
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
अभागा दारा शुकोह - श्री अविनाश कुमार श्रीवास्तव
मलिक जीवन के यहाँ दो दिन रहने के बाद 9 जून 1659 को प्रातः- काल दारा
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अभागा दारा शुकोह
मलिक जीवन के यहाँ दो दिन रहने के बाद 9 जून 1659 को प्रातः- काल दारा