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बैत
बजाए हाथ बढ़ाने के अपने पाँव बढ़ा
बजाए हाथ बढ़ाने के अपने पाँव बढ़ादुआ तो वहम-ए-असर के सिवा और कुछ नहीं
फ़ितरत वारसी
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सूफ़ी कहावत
ज़मीन-ओ-ज़मां रा बहम दोज़ी ख़ुदावंद ना-दहद रोज़ी
चाहे तुम हर तरफ़ छान मारो, खुदा तुम्हारी रोज़ाना की रोज़ी को बढ़ाने वाला नहीं होगा।
वाचिक परंपरा
नज़्म
फैमली प्लैनिंग
गाँव और शहर की तौक़ीर बढ़ाने के लिएअपने घर के दर-ओ-दीवार सजाने के लिए
अज़ीज़ वारसी देहलवी
नज़्म
वतन के मुहाफ़िज़ का पैग़ाम अपनी माँ के नाम
ताक़त ज़ुल्म-ओ-सितम को अब न बढ़ाने दूँगापाँव ग़ैरों को यहाँ अब न जमाने दूँगा
अज़ीज़ वारसी देहलवी
व्यंग्य
मुल्ला नसरुद्दीन- पहली दास्तान
यकायक ज़ोर से हंसता हुआ लम्बी दाढ़ी वाला भारी-भरकम संगतराश बोलाः "सचमुच ही आप गधे से
लियोनिद सोलोवयेव
सूफ़ी लेख
हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया-अपने पीर-ओ-मुर्शिद की बारगाह में
(मुझे मौलाना बद्रुद्दीन इस्हाक़ से सख़्त मुहब्बत थी। तमाम मआ’मलात में जो मुझे पेश आते थे
निसार अहमद फ़ारूक़ी
सूफ़ी लेख
हिन्दी साहित्य में लोकतत्व की परंपरा और कबीर- डा. सत्येन्द्र
प्रथम वैष्णव चरण ब्राह्मण धर्म अथवा हिन्दू धर्म के नाम से भी अभिहित किया जा सकता
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
सुफ़ियों का भक्ति राग
उत्तर भारत में भक्ति जो वैष्णव मत के रूप में राजपूत रियासतों में पहले ही मौजूद
ख़ुर्शीद आलम
सूफ़ी लेख
ग्रामोफ़ोन क़व्वाली
अ’ज़ीज़ नाज़ाँ ने कई महान संगीतकारों के साथ काम किया और नए नए प्रयोग किए। उन्होंने
सुमन मिश्र
सूफ़ी लेख
क़व्वालों के क़िस्से
भारत-चीन युद्ध के समय जब पूरा देश एकता के सूत्र में बंध गया था,उस नाज़ुक दौर