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सूफ़ी लेख
ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत मख़दूम अहमद चर्म-पोश
दाग़-ए-शकोह-ए-ख़ुस्रवी तेग़-ए-बरहना-ए-फ़क़ीररश्क-ए-हरीर-ओ-पर्नियाँ मलबूस चर्म पोश का
रय्यान अबुलउलाई
ग़ज़ल
जुनूँ से कुछ नहीं चारा करे क्या क़ैस बेचाराबरहना-पा बरहना-सर फिरे है बन में आवारा
शाह तुराब अली क़लंदर
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सूफ़ी लेख
अमीर ख़ुसरो और इन्सान-दोस्ती - डॉक्टर ज़हीर अहमद सिद्दीक़ी
पैग़ंबर-ए-इस्लाम का इर्शाद-ए-गिरामी है कि क़ियामत के दिन अल्लाह अपने बंदों से पूछेगा कि मैं भूका
फ़रोग़-ए-उर्दू
ना'त-ओ-मनक़बत
बरहना सर है आँखें नम हैं और तलवे में छाला हैमगर सूरत बताती है कोई अल्लाह वाला है
इश्तियाक़ आलम शहबाज़ी
ग़ज़ल
बरहना-पा जुनूँ आवारा कौन इस दश्त से गुज़राकि रंगीं ख़ूँ से है याँ नोक हर ख़ार-ए-मुग़ीलाँ की
मीर मोहम्मद बेदार
ग़ज़ल
नई सूरत से मेरे क़त्ल को वो आज आते हैंबरहना तेग़ है इक हाथ में इक हाथ में दिल है
शम्स फ़िरंगी महल्ली
सूफ़ी लेख
हज़रत अमीर ख़ुसरौ
ज़लज़ला दर गोर-ए-निज़ामी फ़िगन्दउसी वक़्त एक बरहना तलवार आप के सर पर आई, आप ने हज़रत