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ग़ज़ल
रिंद भी हाज़िर हैं महफ़िल में मरम्मत के लिएयूँ मज़म्मत मय की ऐ वाइ'ज़ सर-ए-मिंबर न हो
रज़ा फ़िरंगी महल्ली
ना'त-ओ-मनक़बत
ऐ बाद-ए-सबा तुर्बत-ए-मोहताज-ए-मरम्मत हैमिट्टी मुझे थोड़ी सी ला दे दर-ए-अहमद से
मुज़्तर ख़ैराबादी
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सूफ़ी लेख
उ’र्स-ए-बिहार शरीफ़
हज़रत का वा’ज़जुमआ’ के दिन हज़रत क़िब्ला का जामा’ मस्जिद में स़ूफियाना वा’ज़ था।हज़रत ने अपने
निज़ाम उल मशायख़
सूफ़ी लेख
ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत शाह मोहसिन दानापुरी
शाह मोहसिन ने 1926 ईस्वी में “’इख़्वानस्सफ़ा” की बुनियाद रखी जिसके तहत मुशाइ’रे और मुल्क-ओ-समाज के
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
शाह तुराब अली क़लंदर और उनका काव्य
घमंड उस का बढ़े मौला तेरी बंदा-नवाज़ी परइधर हाल ही में इन पंक्तियों के लेखक का
सुमन मिश्र
सूफ़ी लेख
ख़्वाजा मुई’नुद्दीन चिश्ती की दरगाह
अंदरूनी दीवारों पर सुनहरा काम नवाब मुश्ताक़ अ’ली ख़ान आफ़ रामपूर ने कराया था। मज़ार की
निसार अहमद फ़ारूक़ी
सूफ़ी लेख
लखनऊ का सफ़रनामा
आज 9 नवंबर मंगल की सुब्ह है ।चाय पी कर हम लोग हज़रतगंज की तरफ़ रवाना
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी कहानी
एक बाग़बान का सूफ़ी-ओ-फ़क़ीह-ओ-अ'लवी को एक दूसरे से जुदा करना- दफ़्तर-ए-दोउम
जब सूफ़ी कुछ दूर चला गया तो उस के साथियों से कहने लगा, क्यों साहिब आप
रूमी
क़िस्सा
क़िस्सा चहार दर्वेश
यह सुन कर जोगी ने मेरी तरफ़ देखा और चुपके से उठकर बाग़ के कोने में
अमीर ख़ुसरौ
सूफ़ी लेख
बहादुर शाह और फूल वालों की सैर
सन 1264 हिज्री का सावन भी ग़ज़ब का सावन था या तो बरसा ही न था