आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "मह-पारा"
अत्यधिक संबंधित परिणाम "मह-पारा"
सूफ़ी कहावत
ज़र' नाकरदा पारा मकुन
पहले उसे माप लें बिना माप लिए कपड़े काटने की कोशिश न करें।
वाचिक परंपरा
ग़ज़ल
चराग़-ए-मह सीं रौशन-तर है हुस्न-ए-बे-मिसाल उस काकि चौथे चर्ख़ पर ख़ुर्शीद है अक्स-ए-जमाल उस का
सिराज औरंगाबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
गुल-ए-बुस्तान-ए-मा'शूक़ी मह-ए-ताबान-ए-महबूबीनिज़ामुद्दीन सुल्तान-उल-मशाइख़ जान-ए-महबूबी
हसरत अजमेरी
गूजरी सूफ़ी काव्य
बन्दे हैं तेरी छब के मह से जमालवाले
बन्दे हैं तेरी छब के मह से जमालवाले,सब गुल से गालवाले, संबुल से बालवाले।
अब्दुल वली उज़लत
अन्य परिणाम "मह-पारा"
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
बुती कू ज़ोहरा-ओ-मह रा हमा शब शेवा आमोज़ददो-चश्म-ए-ऊ ब-जादूई दो-चश्म-ए-चर्ख़ बर-दोज़द
रूमी
ग़ज़ल
दे के ग़म उफ़ मह-जबीं 'इशरत का सामाँ ले चलादिल मिरा ज़ख़्मी किया और दीन-ओ-ईमाँ ले चला
औघट शाह वारसी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
मज़रा-ए’-सब्ज़-ए-फ़लक दीदम-ओ-दास-ए-मह-ए-नौयादम अज़ किश्तः-ए-ख़्वेश आमद-ओ-हंगाम-ए-देरौ
हाफ़िज़
कलाम
ख़याल आया जो उस मह-रू को गुल-गश्त-ए-ख़ियाबाँ कानज़र कुछ और ही आने लगा 'आलम-ए-गुलिस्ताँ का
सय्यद अली केथ्ली
ग़ज़ल
औघट शाह वारसी
कलाम
मेरे मह-जबीं ने ब-सद-अदा जो नक़ाब रुख़ से उठा दियाजो सुना न था कभी होश में वो तमाशा मुझ को दिखा दिया
औघट शाह वारसी
फ़ारसी कलाम
परतव-ए-महर-ए-क़दीमस्त ईं मह-ए-ताबान-ए-'इश्क़जल्वा-ए-नूर-ए-कलीमसत आतिश-ए-सोज़ान-ए-'इश्क़