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महाकाव्य
।। रसप्रबोध ।।
पिय बिछुरन दुख नवल तिय मुख सों कहति लजाइ।बदन मुँदे नलनीर के जल सम रुके बनाइ।।419।।
रसलीन
सतसई
।। बिहारी सतसई ।।
जुरे दुहुनु के दृग झमकि रुके न झानैं चीर।हलुकी फौज हरौल ज्यौं परै गोल पर भीर।।198।।
बिहारी
ना'त-ओ-मनक़बत
नबी तन्हा चले आगे रुके जिब्रील सिदरह परकि मिलने नूर-ए-अहमद ख़ालिक़-ए-अकबर से जाता है
महमूद अहमद रब्बानी
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ग़ज़ल
निकल कर आँख से आँसू रुके हैं नोक-ए-मिज़्गाँ परकि लड़कों को तमाशा-ए-लब-ए-साहिल पसंद आया
अशफ़ाक़ हुसैन मारहरवी
कलाम
वो रुके तो अब्र-ए-रमा रुका वो चले तो शाख़ें लचक गईंमैं हुजूम-ए-रंग में खो गया वो नज़र से जाम उतर गए
अज्ञात
व्यंग्य
मुल्ला नसरुद्दीन- तीसरी दास्तान
रास्ते में उस की मुलाक़ात बख़्तियार से हुई जो आरामगाह से चुपचाप साये की तरह निकला
लियोनिद सोलोवयेव
व्यंग्य
मुल्ला नसरुद्दीन- दूसरी दास्तान
ख़ोजा नसरुद्दीन ने जवाब दियाः "ख़ैर, देखा जायगा कि आख़िरकार चेरी मिली किसे। लेकिन मेरी बात
लियोनिद सोलोवयेव
सूफ़ी लेख
हज़रत मख़्दूम दरवेश अशरफ़ी चिश्ती बीथवी
ये था हालात-ए-ज़िंदगी का वो ख़ाका जहाँ से आपकी ज़िंदगी में एक अ’ज़ीम तब्दीली रूनुमा हुई,
मुनीर क़मर
सूफ़ी लेख
Jamaali – The second Khusrau of Delhi (जमाली – दिल्ली का दूसरा ख़ुसरो)
(मैं रूम से शाम तक सफ़र करता रहा मगर मेरे दिल को एक लम्हा आराम मयस्सर
सुमन मिश्र
सूफ़ी लेख
मंसूर हल्लाज
क़ैद-ख़ाने में उनसे बहुत सी करामातें ज़ाहिर हुईं जिनमें सबसे आख़िरी करामत ये थी कि एक