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ना'त-ओ-मनक़बत
ये रू-ए-अनवर ये ख़ू-ए-ज़ेबा जमाल ऐसा कमाल ऐसाख़ुदा की क़ुदरत का है करिश्मा जमाल ऐसा कमाल ऐसा
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ना'त-ओ-मनक़बत
हसीन ऐसे कि जिन के हुस्न का यूसुफ़ तमन्नाईहसीनान-ए-जहाँ सदक़ा हैं उन के रू-ए-अनवर का
शब्बीर साजिद मेहरवी
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ग़ज़ल
तमाशा-ए-मह-ओ-ख़ुर्शीद से क्या ख़ाक सैरी होमिरी आँखों में जल्वा है किसी के रू-ए-अनवर का
फ़ज़लुर रहमान माह
ना'त-ओ-मनक़बत
वो जिस के रू-ए-अनवर में जमाल-ए-सरमदी पिन्हाँवो जिस की ख़ू-ए-अतहर में जलाल-ए-एज़दी पैदा
सूफ़ी तबस्सुम
सूफ़ी लेख
हज़रत शाह वजीहुद्दीन अलवी गुजराती
हर मा’नी है इस में दुर्र-ए-ख़ुश-आबरू-ए-अनवर की तेरे देख ज़िया
मआरिफ़
नज़्म
सम्त-ए-काशी से चला जानिब-ए-मथुरा बादल
शब-ए-असरा में तजल्ली से रू-ए-अनवर कीपड़ गई गर्दन रफ़रफ़ में सुनहरी हैकल
मोहसिन काकोरवी
ना'त-ओ-मनक़बत
मदीने वाले आक़ा ये तो हसरत कम से कम निकलेतुम्हारा रू-ए-अनवर देख कर आँखों का दम निकले
बह्ज़ाद लखनवी
ना'त-ओ-मनक़बत
तो फिर हर दाग़-ए-'इस्याँ मेहर की सूरत चमक उट्ठेज़ियारत रू-ए-अनवर की अगर इक बार हो जाए