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ना'त-ओ-मनक़बत
दिल-ए-वीरान को सरसब्ज़ बनाने वालेदार-ए-ज़ुल्मत में कई शमएँ' जलाने वाले
डॉ. शाह ख़ुसरौ हुसैनी
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ना'त-ओ-मनक़बत
ज़ुल्मतों में गुम थी दुनिया रौशनी मफ़क़ूद थीनूर की शमएँ' जलाने ख़ुद मोहम्मद आ गए
सय्यद अमजद हुसैन
कलाम
ये तफ़्सील-ए-मोहब्बत है ये उल्फ़त का ख़ुलासा हैसुलगती है उधर शमएँ' इधर जलते हैं परवाने
मंज़ूर आरफ़ी
ग़ज़ल
हमारे दिल के दाग़ों की वहँ शमएँ' हुईं रौशनहमारी आँख के पर्दे पड़े उन के शबिस्ताँ में
रियाज़ ख़ैराबादी
कलाम
सहर ने ले के अंगड़ाई तिलिस्म-ए-नाज़-ए-शब तोड़ाफ़लक पर हुस्न की शमएँ उठीं तारों की महफ़िल से
एहसान दानिश
ग़ज़ल
हैं रौशन अंजुम-ओ-शम्स-ओ-क़मर की रात-दिन शमएँहमारे वास्ते गर्दूं भी क्या रौनक़ की महफ़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ना'त-ओ-मनक़बत
हमारे दिल में क्यूँ ईमान की शमएँ' न हों रौशनहर इक गोशा में काली कमली वाले की मवद्दत है