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न आया क्या सबब अब अलग रहा दिल-ए-इंतिज़ार आख़िरजहाँ होवे वहाँ जा कर मुझने होना निसार आख़िर
तुराब अली दकनी
ग़ज़ल
न आया क्या सबब अब अलग रहा दिल-ए-इंतिज़ार आख़िरजहाँ होवे वहाँ जा कर मुझने होना निसार आख़िर
तुराब अली दकनी
ग़ज़ल
अरे दिल क्या सबब नाहक़ परेशाँ इस क़दर है रेकिसी के हल्क़ा-ए-काकुल का शायद कुछ असर है रे
तुराब अली दकनी
सूफ़ी कहानी
इब्राहीम अदहम के तख़्त-ओ-ताज को तर्क करने का सबब
एक रात वो बादशाह अपनी ख़्वाब-गाह में सो रहे थे और निगहबान चारों तरफ़ पहरा दे
रूमी
सूफ़ी लेख
क़व्वाली में आदाब-ए-समाअ से इन्हिराफ़ का सबब
अमीर ख़ुसरौ ने अपनी ईजाद कर्दा क़व्वाली हैं जो आदाब-ए-समा’अ को ख़ास अहमियत न दी तो
अकमल हैदराबादी
दकनी सूफ़ी काव्य
वाह वाह बुलबुले गुलज़ार इश्क़
क्या सबब करती है इतना उजरे लंग?क्या सबब खाती है तूँ ख़ूने ज़िगर
वजदी
दकनी सूफ़ी काव्य
मसनवी दर फ़वायद बिस्मिल्ला
हमें काहे को चाहिए कुछ सबबहमारी बनी शक्ल सारी तलब
गुलामनबी हैदराबादी
दकनी सूफ़ी काव्य
रियाज़ उल आरफ़ीन
यो अनाराँ तुर्श लाया क्या सबब ?बोल उट्ठे अधम के मुझकू ख़बर