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ना'त-ओ-मनक़बत
सलातीन-ए-जहाँ के दिल में अरमान-ए-ग़ुलामी है'अजब शाहाना दरबार-ए-शहंशाह-ए-गिरामी है
शकील बदायूँनी
सूफ़ी लेख
ख़्वाजा साहब पर क्या कहती हैं पुरानी किताबें?
शजरत-उल-अनवार (अली असग़र गीलानी)मिरत-उस-सलातीन (ग़ुलाम हुसैन तबातबाई)
रय्यान अबुलउलाई
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ना'त-ओ-मनक़बत
क्यूँ कर न करें रश्क सलातीन-ए-ज़माना'साजिद' मैं सग-ए-कू-ए-हुसैनी हसनी हूँ
शब्बीर साजिद मेहरवी
ना'त-ओ-मनक़बत
सलातीन-ए-ज़माँ भी ख़म हैं उन के आस्तानों परजहान-ए-मा’रिफ़त के तर्जुमाँ हैं औलिया-अल्लाह
हबीबुल्लाह साग़र वारसी
ना'त-ओ-मनक़बत
पलट कर भी सलातीन-ए-जहाँ को देखता कब हैमगन है अपनी कमली में गदाई शाह-ए-जिलानी
मौलाना अ’ब्दुल क़दीर हसरत
ना'त-ओ-मनक़बत
सलातीन-ए-हुकूमत अहल-ए-सर्वत अहल-ए-दौलत सेकहीं बाला-ओ-बरतर है तिरे दर का गदा ख़्वाजा
ख़्वाजा नाज़िर निज़ामी
ना'त-ओ-मनक़बत
करम तेरे ग़ुलामों का हो जिस पर उस को देते हैंसलातीन-ए-दिल से नज़्र-ओ-बाज या महबूब-ए-सुबहानी
शाह अब्दुल क़ादिर बदायूँनी
सूफ़ी लेख
तजल्लियात-ए-सज्जादिया
तारीख़ शाहिद है कि सलातीन-ए-ज़माना उनकी दहलीज़ पर सर-ख़मीदा नज़र तो आते हैं लेकिन उनके क़दम