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दकनी सूफ़ी काव्य
रिसाला ए वजूदिया
आग का दर्द ताप हरारत हैबारी का दर्द ठण्ड होर लरजा है
शैख़ अब्दुल कादरी
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ना'त-ओ-मनक़बत
नक़ीब-ए-’इश्क़ तेरी ज़ात आ'ली-शान को पायातिरे मल्फ़ूज़ रूद-ए-इ'श्क़ उल्फ़त की हरारत से
साक़िब ख़ैराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
शो'ला-ए-'इश्क़-ए-सरापा पैकर-ए-सोज़-ए-तमामक़ल्ब-ए-फ़ितरत की हरारत है बनी हाशिम का चाँद
आरज़ू सहारनपुरी
ना'त-ओ-मनक़बत
चिराग़-ए-ज़ेर-ए-दामान-ए-करम को कौन फूँकेगाहै मेरे 'साग़र'-ए-दिल में हरारत शाह-ए-बतहा की
हबीबुल्लाह साग़र वारसी
ना'त-ओ-मनक़बत
नूर-ए-ईमाँ हैं 'अली ईमाँ की हरारत की क़समशर्ह-ए-क़ुरआँ हैं 'अली क़ुरआँ की 'अज़्मत की क़सम
साइम चिश्ती
ग़ज़ल
तिरी बातें थीं जिन से जाँ में आती थी हरारत सीवो सब अल्फ़ाज़ अब रुख़्सत हुए बे-ताब आँखों से
आकिफ़ हुसैन शाहवली
सूफ़ी लेख
गीता और तसव्वुफ़ - मुंशी मंज़ूरुल-हक़ कलीम
सातवें बाब में ज्ञान विज्ञान योग नामी तीस मंत्र हैं। उस का ख़ुलासा ये है कि
ज़माना
सूफ़ी लेख
हज़रत शैख़ सदरुद्दीन आ’रिफ़ रहमतुल्लाह अ’लैह
मगर इस फ़य्याज़ी और जूद-ओ-सख़ा के बावजूद उनके यहाँ दौलत की फ़रावानी रहती थी।एक बार शैख़
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी साहित्य
रिसाला-ए-हक़-नुमा
ऐ यार! जब हब्स-ए-नफ़्स के शुग़्ल-ए-शरीफ़ को मज़कूरा बाला तरीक़े से अ’मल में लाएगा तो अ’जीब-ओ-ग़रीब
दारा शिकोह
सूफ़ी साहित्य
इल्म-ए-लदुन्नी
रूह-ए-हैवानी जिस्म-ए-लतीफ़ है।गोया रौशन चराग़ है जो दिल के शीशे में रखा हुआ है।इस से मेरी
इमाम ग़ज़ाली
सूफ़ी साहित्य
दूसरा बाब - मा'रिफ़त-ए-तासीर-ए-आ’लम और चौथा बाब:- रियाज़त और उस की कैफ़ियत
आफ़ताब-ओ-माहताब और वह तमाम चीज़ें जो आ’लम-ए-कबीर में मौजूद हैं वह सभी आ’लम-ए-सग़ीर में भी पाई