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सूफ़ी कहावत
हर रोज़ ईद नीस्त कि हलवा खुरद कसी
हर दिन ईद का त्योहार नहीं होता कि हल्वा खाया जाए।
वाचिक परंपरा
गूजरी सूफ़ी काव्य
'बाजन' हलवा प्रेम जेहे चाउं खाइया।
'बाजन' हलवा प्रेम जेहे चाऊँ खाइयाउस तो कुछ न भावे जीव नशा सूँ लाइया
शैख़ बहाउद्दीन बाजन
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सूफ़ी कहानी
मुसलमान,यहूदी और ई’साई का हम-सफ़र होना - दफ़्तर-ए-शशुम
ये सुनकर यहूदी और ई’साई दोनों घबरा कर बोले कि अरे हरीस बे-वक़ूफ़! सच्च कह क्या
रूमी
व्यंग्य
मुल्ला नसरुद्दीन- तीसरी दास्तान
एक बार फिर ख़ोजा नसरुद्दीन के मुहं में गर्म मिठाइयां और हलवा ठूंस दिया गया। उस
लियोनिद सोलोवयेव
व्यंग्य
मुल्ला नसरुद्दीन- दूसरी दास्तान
"कहिए, मौलाना हुसैन!" बहुत नरमी से ख़ोजा नसरुद्दीन बोला। "इस मीनार में हम लोग बहुत आराम
लियोनिद सोलोवयेव
सूफ़ी कहानी
कहानी -6-ख़ामोशी- गुलिस्तान-ए-सा’दी
सहबान वाइल भाषाविज्ञान तथा अलंकार शास्त्र का जाता था। उसका भाषा पर ऐसा अधिकार था कि
सादी शीराज़ी
सूफ़ी लेख
Sheikh Naseeruddin Chiragh-e-Dehli
अपनी माँ के देहांत तक नसीरुद्दीन अयोध्या में ही रहे । इनकी वालिदा की मज़ार अयोध्या
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
ख़्वाजा क़ुतुबुद्दीन बख़्तियार काकी
हज़रत ख़्वाजा साहिब अजमेरी ने हिन्दुस्तान तशरीफ़ लाने के बा’द अजमेर को अपना मर्कज़ क़रार दिया