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ग़ज़ल
‘नख़्शब’-ए-ख़ाम-कार की बातें भी आप ने सुनींआया हो जैसे 'अर्श पर 'उम्र के दिन गुज़ार कर
नख़्शब जार्चवि
ना'त-ओ-मनक़बत
आज भी ख़ुद्दारियों की राह ना-हमवार हैआज भी ख़तरे में ’अज़्म-ओ-जज़्बा-ए-बेदार है
नख़्शब जार्चवि
ग़ज़ल
‘नख़्शब’-ए-ख़स्ता-हाल ने कोशिशें कीं हज़ार-हाफिर भी ख़याल-ए-हुस्न-ए-दोस्त दिल से जुदा न हो सका
नख़्शब जार्चवि
ग़ज़ल
समझते हैं फ़रेब-ए-जल्वा-ए-रंगीं मगर 'नख़शब'ये वो मंज़िल है अहल-ए-दिल जहाँ मजबूर होते हैं
नख़्शब जार्चवि
गीत
क्या-क्या रूप दिखाए जीवन क्या-क्या रूप दिखाएकभी निपट अँधेरी पल में रैन से भोर हो जाए
नख़्शब जार्चवि
गीत
नख़्शब जार्चवि
ग़ज़ल
किसी सूरत से 'नख़शब' दिल को यकसूई तो हासिल होवो जल्वा ’आदतन क्यूँ फ़ित्रतन मस्तूर हो जाए
नख़्शब जार्चवि
ग़ज़ल
‘नख़शब’-ए-सादा लौह कब हुस्न से कोई बच सकेहिस न हो जिस के क़ल्ब में उस के लिए मफ़र भी है