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ना'त-ओ-मनक़बत
जो था गर्द का'बा की मस्ती में रक़्साँवो 'मज्ज़ूब' है होशियार-ए-मदीना
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
बहुत गो 'इश्क़ में 'मज्ज़ूब' बदला तुम ने हाल अपनेमगर जैसा बदलना चाहिए वैसा कहाँ बदला
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
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ग़ज़ल
मगर 'मज्ज़ूब' तो महव-ए-ख़याल-ए-ज़ुल्फ़-ए-पेचाँ हैतिरी जो बात है उलझी हुई मा’लूम होती है
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
ग़ज़ल
ज़रा देखो तो तुम इंसाफ़ से 'मज्ज़ूब' की हैअतमोहब्बत के रिया-कारों की ये सूरत नहीं होती
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
'मज्ज़ूब' अब किसी से भला क्यूँ लगाए दिलदिल आश्ना-ए-दर्द है दर्द आश्ना-ए-दिल
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
'मज्ज़ूब' तू भी ग़ैर-ए-ख़ुदा से लगाए दिल'इश्क़-ए-बुताँ है बंदा-ए-हक़ ना-सज़ा-ए-दिल
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
ग़ज़ल
'मज्ज़ूब'-ए-मस्त से तुझे निस्बत ही शैख़ क्यातू पारसा-ए-वज़' है वो पारसा-ए-दिल
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
क़िता'
'मज्ज़ूब' ख़स्ता-हाल समझते हैं सब जिसेक्या जाने हाल-ए-ख़ुश कोई उस ख़ुश-नसीब का
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
न रह नाशाद सालिक मस्लक-ए-'मज्ज़ूब' पर आ जाअगर हर हाल में तू चाहता है शादमाँ रहना
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
ग़ज़ल
नहीं 'मज्ज़ूब' दम-भर को भी तेरी याद से ग़ाफ़िलबड़ा हुशियार मतलब का तिरा दीवाना होता है