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ग़ज़ल
अरे दिल क्या सबब नाहक़ परेशाँ इस क़दर है रेकिसी के हल्क़ा-ए-काकुल का शायद कुछ असर है रे
तुराब अली दकनी
बैत
यही सबब था जो ज़ुल्फ़ों को थे बढ़ाए हुए
यही सबब था जो ज़ुल्फ़ों को थे बढ़ाए हुएकि आज सारे ज़माने पे हैं वो छाए हुए
फरोग़ वारसी
सूफ़ी लेख
क़व्वाली में आदाब-ए-समाअ से इन्हिराफ़ का सबब
अमीर ख़ुसरौ ने अपनी ईजाद कर्दा क़व्वाली हैं जो आदाब-ए-समा’अ को ख़ास अहमियत न दी तो
अकमल हैदराबादी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
बे-सबब नीस्त गुज़रगाहे ख़यालत बर मनबे-सबब गुर्ग-ए-मोकाबिर ब-सू-ए-मेश न-रफ़्त
अमीर ख़ुसरौ
ग़ज़ल
सबब न पूछ कि ये इब्तिदा की बातें हैंफ़ुग़ाँ ही अब तो सबब है मिरी फ़ुग़ाँ के लिए