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सूफ़ी लेख
बक़ा-ए-इन्सानियत में सूफ़ियों का हिस्सा (हज़रत शाह तुराब अ’ली क़लंदर काकोरवी के हवाला से) - डॉक्टर मसऊ’द अनवर अ’लवी
मुनादी
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ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत शाह अहमद हुसैन चिश्ती शैख़पूरवी
एक सूफ़ी के लिए शाइरी वक़्त को गुज़ारने का एक ज़रीया’ है जो उसके ख़यालात और
रय्यान अबुलउलाई
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दूल्हा और दुल्हन का आरिफ़ाना तसव्वुर
नैनन सियतीं बाद बहारों पाऊँ जो, बल्ली जाऊँ रीक़ाज़ी महमूद दरियाई बुलंद पाये बुज़ुर्ग थे। उनका
शमीम तारिक़
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आदाब-ए-समाअ’ पर एक नज़र - मैकश अकबराबादी
इसी तरह बा’ज़ अ’रबी पढ़े ए’तिराज़ करते हैं कि क़ुरआन-ए-मजीद पर कैफ़िय्यत क्यों नहीं होती गाने
मयकश अकबराबादी
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चिश्तिया सिलसिला की ता’लीम और उसकी तर्वीज-ओ-इशाअ’त में हज़रत गेसू दराज़ का हिस्सा
कि उनकी फ़य्याज़ियाँ और करम-गुस्तरियाँ अपने और पराए का फ़र्क़ नहीं करतीं और हर कस-ओ-ना-कस के
ख़लीक़ अहमद निज़ामी
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फ़िरदौसी - सय्यद रज़ा क़ासिमी हुसैनाबादी
फ़िरदौसी दूसरे ईरानी शो’रा की तरह ग़ज़लें या आ’शिक़ाना नग़्मे नज़्म करता था। उसकी रगों में
ज़माना
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समकालीन खाद्य संकट और ख़ानक़ाही रिवायात
भूक से नजात के लिए सूफ़िया का ला-ज़वाल कारनामाःसूफ़िया-ए-किराम ने एक ख़ुशहाल समाज तश्कील और ख़ुराक
रहबर मिस्बाही
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क़व्वाली और अमीर ख़ुसरो – अहमद हुसैन ख़ान
मज़्कूरा बाला क़ल्ल-ओ-दल्ल से क़व्वाली जैसी मौसीक़ी बहर सूरत मुफ़ीद साबित होती है। इस से जो