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सूफ़ी लेख
मयकश अकबराबादी जीवन और शाइरी
हज़रत का है ,दुनिया से निराला दस्तूरबातिन में तही-दस्त, ब-ज़ाहिर फ़ग़्फ़ूर
सुमन मिश्रा
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ज़िक्र-ए-ख़ैर : ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
उसके चेहरा पर ख़ुदा जाने ये कैसा नूर थावर्ना ये दीवानगी कब इ’श्क़ का दस्तूर था
रय्यान अबुलउलाई
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अमीर ख़ुसरो - तहज़ीबी हम-आहंगी की अ’लामत - डॉक्टर अनवारुल हसन
मो’तरिफ़ अस्त ऊ कि न मिस्ले अस्त ज़े-हक़।।संग-ए-दस्तूर-ओ-ख़िरद,ख़ुरशीद-ओ-गया।
सूफ़ीनामा आर्काइव
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महफ़िल-ए-समाअ’ और सिलसिला-ए-वारसिया
फ़ी ज़मानिना दुनिया में जितने भी सलासिल हैं उनमें बेशतर सिलसिलों में महफ़िल-ए-समाअ’ का चलन राइज
डॉ. कबीर वारसी
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हज़रत शाह-ए-दौला साहब-मोहम्मदुद्दीन फ़ौक़
मियाँ दौलाः-पुराने ज़माने में दस्तूर था और बा’ज़ देहात और गाँव में अब तक भी ये
सूफ़ी
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हज़रत सय्यिद मेहर अ’ली शाह - डॉक्टर सय्यिद नसीम बुख़ारी
आपका मा’मूल था कि फ़ज्र के वक़्त से दस बजे दिन तक ज़िक्र-ओ-अज़्कार में अपने आपको
मुनादी
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हज़रत ख़्वाजा नूर मोहम्मद महारवी - प्रोफ़ेसर इफ़्तिख़ार अहमद चिश्ती सुलैमानी
पाक-पत्तन शरीफ़ से वापसी के बा’द ये दस्तूर रहा कि आप छः माह के क़रीब दिल्ली
मुनादी
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तज़्किरा-ए-फ़ख़्र-ए-जहाँ देहलवी
मैंने पाक पतन शरीफ़ में 5 मुहर्रम की रात को देखा कि मैं ज़िक्र-ए-जेह्र कर रहा
निसार अहमद फ़ारूक़ी
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निरंजनी साधु
हरीदास जी के 52 चेले थे। जिन चेलों से निरंजनियों के 52 थांमे, हरीदाससोत, पुरणदासोत, अमरदातोस
भारतीय साहित्य पत्रिका
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अमीर ख़ुसरो के अ’हद की देहली - हुस्नुद्दीन अहमद
दवात-दार जिसके पास बादशाह की दवात रहती थी।अमीर ख़ुसरो के अ’हद में सरकारी ख़ज़ाना से रुक़ूमात
मुनादी
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हज़रत ख़्वाजा गेसू दराज़ चिश्ती अक़दार-ए-हयात के तर्जुमान-डॉक्टर सय्यद नक़ी हुसैन जा’फ़री
इन मौज़ूआ’त के अ’लावा जिन मबाहिस पर हज़रत ख़्वाजा गेसू दराज़ (रहि•) ने क़लम उठाया है