आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "बजाए"
सूफ़ी लेख के संबंधित परिणाम "बजाए"
सूफ़ी लेख
हज़रत शैख़ बुर्हानुद्दीन ग़रीब
ऐ’ब-जोईः-लोगों की ऐ’ब-जोई के सिलसिले में मुरीदों को बताया कि अगर तुम्हारा कोई ऐ’ब ज़ाहिर करे
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
पदमावत के कुछ विशेष स्थल- श्री वासुदेवशरण
करना=उसी प्रकार का दूसरा बाजा, जिसमें चार एक साथ बजाए जाते हैं। अबुल फजल ने अकबर
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया-अपने पीर-ओ-मुर्शिद की बारगाह में
(मुझे मौलाना बद्रुद्दीन इस्हाक़ से सख़्त मुहब्बत थी। तमाम मआ’मलात में जो मुझे पेश आते थे
निसार अहमद फ़ारूक़ी
सूफ़ी लेख
हज़रत शैख़ बहाउद्दीन ज़करिया सुहरावर्दी रहमतुल्लाह अ’लैह
चुनाँचे मुतरिबा हज़रत शैख़ बहाउद्दीन ज़करिया के सामने लाई गई, मगर उस पर ऐसा रो’ब तारी
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
ख़्वाजा क़ुतुबुद्दीन बख़्तियार काकी
हज़रत ख़्वाजा क़ुतुब साहिब वस्त एशिया के मक़ाम-ए-ओश के रहने वाले थे। छोटे से थे कि
ख़्वाजा हसन सानी
सूफ़ी लेख
क़व्वाली और अमीर ख़ुसरो – अहमद हुसैन ख़ान
मज़्कूरा बाला क़ल्ल-ओ-दल्ल से क़व्वाली जैसी मौसीक़ी बहर सूरत मुफ़ीद साबित होती है। इस से जो
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
कबीर दास
जम दरवजवा बांध जाले जावे पकराऐ जोगी तूने अपने दिन को नहीं रंगाया सिर्फ़ कपड़ा रंगा
ज़माना
सूफ़ी लेख
बिहार में क़व्वालों का इतिहास
उनमें अमेठी के सिलोन इलाक़े के रहने वाले ख़ैराती ख़ाँ क़व्वाल थे, जो सितार अच्छा बजाते
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
वेदान्त - मैकश अकबराबादी
संहिता या’नी चारों वेदों के बा’द जो किताबें वेदिक अदब में क़ाबिल-ए-एहतिराम हैं वो बरहमन हैं
मयकश अकबराबादी
सूफ़ी लेख
शैख़ सा’दी का तख़ल्लुस किस सा’द के नाम पर है ?
अ’ल्लामा शिबली मरहूम ने शे’रुल-अ’जम में एक सौ बीस बरस की उ’म्र को खिलाफ-ए-क़ियास तहरीर फ़रमाया
एजाज़ हुसैन ख़ान
सूफ़ी लेख
हज़रत शरफ़ुद्दीन अहमद मनेरी रहमतुल्लाह अ’लैह
नफ़्स-कुशीः-इस रियाज़त के ज़माना में खाने पीने से परहेज़ करते।जब कभी इश्तिहा का ग़लबा होता तो
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
फ़िरदौसी - सय्यद रज़ा क़ासिमी हुसैनाबादी
जब फ़िरदौसी ने उस रक़म को लेने से इन्कार कर दिया, तब वोज़रा ने सुल्तान को
ज़माना
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
बरवा राग में लय भी इन्होंने रखी है। यह गीत तो युवा स्त्रियों के लिए बनाया
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
बरवा राग में लय भी इन्होंने रखी है। यह गीत तो युवा स्त्रियों के लिए बनाया