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सूफ़ी लेख
ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत हसन जान अबुल उलाई
आफ़्ताब ए रूह ए पाक अज़ अब्र ए जिस्म आमद बुरुन(1334-1338 हिज्री)
रय्यान अबुलउलाई
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बिहार के प्रसिद्ध सूफ़ी : मख़दूम मुनएम पाक
पटना हर ज़माने में सूफ़ियों और संतों का बड़ा केंद्र रहा है। यहाँ बड़े-बड़े सूफ़ियों की
रय्यान अबुलउलाई
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हज़रत शैख़ जमालुद्दीन कोल्हवी
मय-कशाँ मुज़्द: कि अब्र आमद-ओ-बिस्यार आमदचारों तरफ़ से घटा उमड़ आई। मूसला-धार बरसने लगा। चारों तरफ़
निज़ाम उल मशायख़
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ज़ियाउद्दीन बर्नी की ज़बानी हज़रत महबूब-ए-इलाही का हाल
गुनाहों के इर्तिकाब और उनके मुतअ’ल्लिक़ लोगों में बहुत कम बात-चीत होती थी। उनमें अक्सर-ओ-बेश्तर जो
ख़्वाजा हसन सानी
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हज़रत बख़्तियार काकी रहमतुल्लाहि अ’लैह - मोहम्मद अल-वाहिदी
तो हज़रत ख़्वाजा ने इस शे’र की अपनी ज़ुबान-ए-मुबारक से तकरार की और बेहोश हो गए|
निज़ाम उल मशायख़
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क़व्वाली का ‘अह्द-ए-ईजाद और मक़्सद-ए-ईजाद
क़व्वाली की ईजाद अमीर ख़ुसरो के ‘अह्द-ए-हयात 1253 ता 1325 के ठीक दरमियान का ‘अह्द है,
अकमल हैदराबादी
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महफ़िल-ए-समाअ’ और सिलसिला-ए-वारसिया
अ’रबी ज़बान का एक लफ़्ज़ ‘क़ौल’ है जिसके मा’नी हैं बयान, गुफ़्तुगू और बात कहना वग़ैरा।आ’म
डॉ. कबीर वारसी
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क़व्वाली का अहद-ए-ईजाद और समाजी पस-ए-मंज़र
मूजिद-ए-क़व्वाली हज़रत अमीर ख़ुसरो का ‘अह्द इब्तिदा-ए-इस्लाम और मौजूदा ‘अह्द के ठीक दरमियान का ‘अह्द है
अकमल हैदराबादी
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सूफ़िया-ए-किराम और ख़िदमात-ए-उर्दू - सय्यद मुहीउद्दीन नदवी
आज दुनिया बजा तौर पर उन मुबारक हस्तीयों पा नाज़ कर सकती है जिन्हों ने इ’मादुद्दीन
सूफ़ीनामा आर्काइव
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क़व्वाली ग्यारहवीं शरीफ़ और हज़रत ग़ौस पाक के चिल्लों पर
ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती के चिल्लों पर क़व्वाली के रिवाज और उसकी मक़्बूलियत के बाद हिन्दोस्तान में
अकमल हैदराबादी
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बक़ा-ए-इंसानियत के सिलसिला में सूफ़िया का तरीक़ा-ए-कार- मौलाना जलालुद्दीन अ’ब्दुल मतीन फ़िरंगी महल्ली
बात की इब्तिदा तो अल्लाह या ईश्वर के नाम ही से है जो निहायत मेहरबान और