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कलाम
चश्म में ख़ल्क़ की गो मिस्ल-ए-हबाब आता हूँऐ'न-ए-दरिया हूँ हक़ीक़त में बहा जाता हूँ
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
कलाम
बहर-जल्वा न रुस्वा कर मज़ाक़-ए-चश्म-ए-हैराँ कोयही बातें निगाहों से गिरा देती हैं इंसाँ को
सीमाब अकबराबादी
कलाम
इक़बाल सफ़ीपुरी
कलाम
शकील बदायूँनी
कलाम
माहिरुल क़ादरी
कलाम
साएमा ज़ैदी
कलाम
एक 'आलम है कि मक़्तल में है क़ातिल की तरफ़धार ख़ंजर की फ़क़त ’आशिक़-ए-बे-दिल की तरफ़
आसी गाज़ीपुरी
कलाम
तुम्हारी अंजुमन से उठ के दीवाने कहाँ जातेजो वाबस्ता हुए तुम से वो अफ़्साने कहाँ जाते
क़तील शिफ़ाई
कलाम
हर इक 'आशिक़ नए अंदाज़ से क़ुर्बान-ए-क़ातिल थाक़तील-ए-तेग़-ए-बे-सर था शहीद-ए-नाज़-ए-बे-दिल था
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
अंगड़ाई पर अंगड़ाई लेती है रात जुदाई कीतुम क्या समझो तुम क्या जानो बात मिरी तन्हाई की
क़तील शिफ़ाई
कलाम
गाते हुए पेड़ों की ख़ुनुक छाँव से आगे निकल गएहम धूप में जलने को तिरे गाँव से आगे निकल गए
क़तील शिफ़ाई
कलाम
क़तील शिफ़ाई
कलाम
कोई मुश्किल था महशर में तुम्हें क़ातिल बना देनामगर कुछ सोच कर रहम आ गया जाओ दु'आ देना
क़मर जलालवी
कलाम
तिरे जल्वे की बढ़ती है लताफ़त चश्म-ए-गिर्यां मेंकि घुल कर अश्क में छुपता है वो दामान-ए-मिज़्गाँ में