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कलाम
प्रेम-नगर की राह कठिन है सँभल-सँभल के चला करोराम राम को मन में जपो तुम ध्यान उसी में धरा करो
सय्यद महमूद शाह
कलाम
बशीर कहिए नज़ीर कहिए उन्हें सिराज-ए-मुनीर कहिएजो सर-बसर है कलाम-ए-रब्बी वो मेरे आक़ा की ज़िंदगी है
ख़ालिद मह्मूद नक़्श्बंदी
कलाम
दिल-ए-शैदा को जिस ने तुर्रा-ए-दस्तार से बाँधागोया मंसूर को बे-रेस्मान-ए-दार से बाँधा
सय्यद अली केथ्ली
कलाम
सच है शह-रग से क़रीं अल्लाह मियाँ है रे मियाँतुझ में ये माद्दा समझने का कहाँ है रे मयाँ
अज़ीज़ुद्दीन रिज़वाँ क़ादरी
कलाम
बहार आए दिल-ए-सूफ़ी पे ज़ेर-ए-साया-ए-कामिलचमन पर रंग आ जाता है अक्सर अब्र-ओ-बाराँ में
सय्यद अली केथ्ली
कलाम
शबीह-ए-’आशिक़-ए-मुज़्तर को देख ऐ कोह-ए-रा’नाईअगर मंज़ूर है तुझ को तमाशा संग-ए-लर्ज़ां का
सय्यद अली केथ्ली
कलाम
रहा बार-ए-अमानत गो वबाल-ए-दोश रस्ते भरन कंधा भी मगर हम ने तह-ए-बार-ए-गराँ बदला
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
आईना-ए-’अली को देख हुस्न-ए-मोहम्मदी को देखकर के निसार जान-ए-वतन 'आशिक़-ए-सरफ़राज़ बन