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Sufinama

ख़फ़ा पर अशआर

ख़फ़ा उस से क्यूँ तू मिरी जान है

'असर' तू कोई दम का मेहमान है

ख़्वाजा मीर असर

उस ने मय्यत पे कर कहा

तुम तो सच-मुच ख़फ़ा हो गए

पुरनम इलाहाबादी

देर से आने पे मेरे तेरी दिलकश बरहमी

वो ख़फ़ा होना तिरा वो रूठना अच्छा लगा

पुरनम इलाहाबादी

वो मेरे सर को ठुकराते हैं सज्दों से ख़फ़ा हो कर

जबीं से मेरी पैवस्तः है उन का आस्ताँ फिर भी

सीमाब अकबराबादी

जान-ओ-दिल से भी गुज़र जाएँगे

अगर ऐसा ही ख़फ़ा कीजिएगा

ख़्वाजा मीर असर

अजब हैं ये राज़-ओ-नियाज़-ए-मोहब्बत

ख़फ़ा क्यूँ हुए वो हैं इस पर ख़फ़ा हम

हसरत मोहानी

आज क्या है कहो क्यूँ ऐसे ख़फ़ा बैठे हो

अपनी कहते हो मेरी ही मियाँ सुनते हो

मीर मोहम्मद बेदार

मैं फ़िदा हूँ आप पर और आप हो मुझ पर ख़फ़ा

ये मेरी तक़्सीर है या कज-अदाई आप की

किशन सिंह आरिफ़

ग़ैरों में मैं अर्ज़-ए-तमन्ना से रुकुँगा

इग़्माज़ करे वो सर-ए-महफ़िल कि ख़फ़ा हो

इब्राहीम आजिज़

देर से आने पे मेरे तेरी दिलकश बरहमी

वो ख़फ़ा होना तिरा वो रूठना अच्छा लगा

पुरनम इलाहाबादी

जहाँ हो बिजलियों का ख़ौफ़ पैहम

सुकून-ए-आशियाँ कुछ भी नहीं है

गुरबचन सिंह दयाल

उठ जाऊँगा एक दिन ख़फ़ा हो

यहाँ तक करो उदास मुझ को

मीर मोहम्मद बेदार

अच्छे से ख़ुश बुरे से ख़फ़ा है ये नٖफ़्स-ए-बद

देखे कोई तो हाल-ए-ज़ार इस शरीर का

अमीनुद्दीन वारसी

ख़फ़ा सय्याद है चीं बर जबीं गुलचीं है क्या बाइ'स

बुरा किस का किया तक़्सीर की हम ने भला किस की

आसी गाज़ीपुरी

मोहब्बत के एवज़ रहने लगे हर-दम ख़फ़ा मुझ से

कहो तो ऐसी क्या सरज़द हुई आख़िर ख़ता मुझ से

हसरत मोहानी

या वो थी ख़फ़ा हम से या हम हैं ख़फ़ा उन से

कल उन का ज़मान: था आज अपना ज़माना है

जिगर मुरादाबादी

मैं ख़फ़ा हो के जब उठा तो वो बोले 'कौसर'

फ़ित्नः-ए-हश्र ने चूमे दम-ए-रफ़्तार क़दम

कौसर वारसी

गो ज़ीस्त से हैं हम आप बेज़ार

इतना पे जान से ख़फ़ा कर

ख़्वाजा मीर असर

तुम ख़फ़ा हो तो अच्छा ख़फ़ा हो

बुतो क्या किसी के ख़ुदा हो

बेदम शाह वारसी

ख़फ़ा मत हो 'बेदार' अंदेशः क्या है

मिला गर वो आज कल मिल रहेगा

मीर मोहम्मद बेदार

होते आज़ुर्दा हो आने से हमारे जो तुम

ख़ुश रहो मत हो ख़फ़ा हम चले लो बिस्मिल्लाह

मीर मोहम्मद बेदार

क्या कहा मैं ने जो नाहक़ तुम ख़फ़ा होने लगे

कुछ सुना भी या कि यूँही फ़ैसला होने लगा

हसरत मोहानी

अगर हम से ख़फ़ा होना है तो हो जाइए हज़रत

हमारे बा’द फिर अंदाज़-ए-यज़्दाँ कौन देखेगा

अज़ीज़ वारसी देहलवी

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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