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अमीनुद्दीन वारसी

- 1927 | लखनऊ, भारत

रुहानी शाइ’र और “वारिस बैकुंठ पठावन” के मुसन्निफ़

रुहानी शाइ’र और “वारिस बैकुंठ पठावन” के मुसन्निफ़

अमीनुद्दीन वारसी

ग़ज़ल 2

 

शे'र 3

 

दोहा 10

काह कहूँ कुछ बन नहीं आवत सुनो गरीब-नवाज

दीन-दयाल हरो दुख संकट लाज-पति महाराज

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जोत बिछाऊँ नैन की सीस धरूँ वही ठाँव

चरन धरूँ पीतम जहाँ और बसूँ जेह गाँव

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बैरी महा-बरियार है बैर करत हर-आन

दास तुम्हारी आस है पत राखो भगवान

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मोरे तुम रघुबीर हो और नहीं कोऊ तीर

पीर हरो किरपा करो लाज धरो मन धीर

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साइन आए निबाहे लियो महा पड़ यों दुख माँह

धन निरास तुम आस है गहियो पीतम बाँह

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राग आधारित पद 1

 

भजन 4

 

ना'त-ओ-मनक़बत 2

 

क़िता' 1

 

पुस्तकें 1

 

Recitation

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