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जंगली शाह वारसी

फ़तेहपुर, भारत

हाजी वारिस अ’ली शाह के चहेते मुरीद जिन्हों ने पीर-ओ-मुर्शिद के हुक्म पर जंगल में ज़िंदगी गुज़ारी

हाजी वारिस अ’ली शाह के चहेते मुरीद जिन्हों ने पीर-ओ-मुर्शिद के हुक्म पर जंगल में ज़िंदगी गुज़ारी

जंगली शाह वारसी

ग़ज़ल 1

 

दोहा 2

कलमः कह सब सर धुनें जाका और छोर

वारिस का मुख देख के सब चितवैं वही ओर

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नूर का रंग भरावा के घट में हर हर पर छप्पर कोरी

प्रेम की बूँद पड़ी जा के मुख पर तन-मन भयोसः पूरी

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रूबाई 1

 

ना'त-ओ-मनक़बत 2

 

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Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

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