हिन्दुस्तानी सूफ़ी कवि
हिन्दुस्तानी सूफ़ी कवि
बिहार के नाम-वर शाइ’र, अदीब, मुसन्निफ़ और मुहक़्क़िक़
ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया के चहेते मुरीद और फ़ारसी-ओ-उर्दू के पसंदीदा सूफ़ी शाइ’र, माहिर-ए-मौसीक़ी, उन्हें तूती-ए-हिंद भी कहा जाता है
दाग़ देहलवी के समकालीन। अपनी ग़ज़ल ' सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता ' के लिए प्रसिद्ध हैं।
गुलिस्तान-ए-मख़्दूम-ए-समनान का एक रौशन चराग़
हिंदुस्तान के मशहूर आ’लिम-ए-दीन और ना’त-गो शाइ’र
हैदराबाद के मश्हूर अबुल-उ’लाई सूफ़ी
चौदहवीं सदी हिज्री के मुमताज़ सूफ़ी शाइ’र और ख़ानक़ाह-ए-रशीदिया जौनपूर के सज्जादा-नशीं
हाजी वारिस अ’ली शाह के मुरीद और अपनी सूफ़ियाना शाइ’री के लिए मशहूर
ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिशती के मुमताज़ मुरीद-ओ-ख़लीफ़ा और जानशीन
‘’आपको पाता नहीं जब आपको पाता हूँ मैं’’ लिखने वाले शाइ’र
सूफ़ी शाइ’र, हिन्दुस्तानी मौसीक़ी के गहरे इ’ल्म के लिए मशहूर
अ’ज़ीमाबाद के मुम्ताज़ सूफ़ी शाइ’र और बारगाह-ए-हज़रत-ए- इ’श्क़ के रूह-ए-रवाँ
ख़ानक़ाह नासरिया, सहारनपुर के चश्म-ओ-चराग़
‘’ख़ुद का पर्दा है तो ख़ुद ख़ुद को ज़रा देख तो ले' के लिए मशहूर
सबसे प्रमुख पूर्वाधुनिक शायरों में शामिल अत्याधिक लोकप्रियता के लिए विख्यात
मुग़्लिय्या सल्तनत के बादशाह शाहजहाँ और मलिका मुमताज़ के बड़े साहिबज़ादे जिन्हों ने सूफ़ियाना रिवायत को मज़ीद जिला बख़्शी, उनके तअ’ल्लुक़ात सिखों के गुरुओं से निहायत ख़ुश-गवार थे
अग्रणी शायर जिन्होंने भारतीय संस्कृति और त्योहारों पर नज्में लिखीं। होली, दीवाली, श्रीकृष्ण पर नज़्मों के लिए मशहूर
हिन्दुस्तान के मुमताज़ सूफ़ी और अमीर ख़ुसरो के पीर-ओ-मुर्शिद
ख़ानक़ाह मुजीबिया, फुलवारी शरीफ़ के सज्जादा-नशीं और बिहार के मुमताज़ फ़ारसी-गो शाइ’र
मशहुर सूफ़ी बुज़ुर्ग बू-अ’ली शाह क़लंदर
मा’रूफ़ ना’त-गो शाइ’र और ''बे-ख़ुद किए देते हैं अंदाज़-ए-हिजाबाना' के लिए मशहूर
हिन्दुस्तान के मा’रूफ़ ख़ैराबादी शाइ’र और जाँ-निसार अख़तर के पिता