कामिल शत्तारी का परिचय
सय्यद शैख़ैन अहमद हुसैनी शत्तारी ‘कामिल’ हैदराबाद दकन के मशाहीर उ’लमा और मशाइख़ ख़ानदान और सादात-ए-हुसैनी से हैं। उनके आबा-ओ-अज्दाद बिलाद-ए-अ’रब से हिन्दुस्तान के मुख़्तलिफ़ शहरों से गुज़रते हुए गुजरात तशरीफ़ आए। उनकी सातवीं पुश्त के जद्द सय्यद अहमद गुजराती ने 1660 ई’स्वी में औरंगाबाद को अपना मस्कन बनाया। सय्यद शाह शैख़ैन अहमद शत्तारी ‘कामिल’ 905 ई’स्वी में आस्ताना-ए- शत्तारिया मोहल्ला दुईरपुरी हैदराबाद में पैदा हुए। उन्होंने इब्तिदाई ता’लीम अपने वालिद-ए- बुजु़र्ग-वार से घर पर ही हासिल की। उन्होंने दीदार अहमद की शागिर्दी में इ’ल्म-ए-मंतिक़ हासिल किया। मौलाना अ’ब्दुल क़दीर सिद्दीक़ी हसरत हैदराबादी, मौलाना अ’ब्दुल-वासे’ (साबिक़ प्रोफ़ेसर उ’स्मानिया यूनीवर्सिटी) और मौलाना सय्यद अ’ब्दुल-बाक़ी शत्तारी, मौलाना ‘कामिल’ के असातिज़ा-ए-ख़ास रहे हैं। ‘कामिल’ ब-यक-वक़्त आ’लिम-ए-दीन, पीर-ए-तरीक़त और अ’सरी तक़ाज़ों पर नज़र रखने वाले मुफ़क्किर और मुदब्बिर थे। कामिल का कलाम आज भी बर्र-ए-सग़ीर की ख़ानक़ाहों में शौक़ से गाया जाता है और कैफ़-ओ-मस्ती का एक समा बंध जाता है। 6 ज़िल-हिज्जा मुवाफ़िक़ 28 नवंबर 1976 ई’स्वी को विसाल फ़रमाया