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मयकश अकबराबादी के सूफ़ी लेख
अबू मुग़ीस हुसैन इब्न-ए-मन्सूर हल्लाज - मैकश अकबराबादी
मंसूर हल्लाज रहमतुल्लाह अ’लैह की शख़्सियत फ़ारसी और उर्दू शाइ’री का भी मौज़ूअ’ रही है, इसलिए इस बारे में क़दरे तफ़्सील की ज़रूत है।उ’लमा-ए-ज़ाहिर के अ’लावा ख़ुद सूफ़ियों में मंसूर के मुतअ’ल्लिक़ मुख़्तलिफ़ नुक़्ता-हा-ए-नज़र मिलते हैं।फ़ारसी शाइ’रों
शाह नियाज़ बरैलवी ब-हैसिय्यत-ए-एक शाइ’र - मैकश अकबराबादी
अक्सर अहल-ए-कमाल ऐसे होते हैं जिनमें चंद कमालात मुज्तमा’ हो जाते हैं मगर बा’ज़ कमाल इस दर्जा नुमायाँ होते हैं कि उनके दूसरे कमालात उन कमालात में मह्व हो कर रह जाते हैं ।मसलन हकीम मोमिन ख़ाँ का तिब्ब और नुजूम शाइ’री में दब कर रह गया, ज़ौक़ और मीर का इ’ल्म-ओ-फ़ज़्ल
हज़रत सय्यिदना अ’ब्दुल्लाह बग़दादी - मैकश अकबराबादी
नाम सय्यिद अ’ब्दुल्लाह,लक़ब मुहीउद्दीन सानी, मौलिद बग़दाद शरीफ़।नसब 12 वास्ते से शैख़ुल-कुल ग़ौस-ए-आ’ज़म हज़रत सय्यिद मुहीउद्दीन अ’ब्दुल क़ादिर जीलानी तक पहुंचता है।जो आपका सिलसिला-ए-नस्ब है वही सिलसिला-ए-तरीक़त है।अपने वालिद-ए-मोहतरम सय्यिद अ’ब्दुल
वेदान्त - मैकश अकबराबादी
हम कौन हैं,काएनात क्या है,तख़्लीक़ का मक़्सद क्या है,इस ज़िंदगी के सफ़र की इंतिहा क्या है,नजात और उसके हासिल करने के ज़रीऐ’ क्या हैं,ये और इस क़िस्म के कई अहम सवाल हैं जिनको फ़ल्सफ़ी दलीलों से हल करना चाहते हैं मुक़ल्लिदीन अपने रहबरों के अक़वाल से,आ’रिफ़
तसव़्वुफ-ए-इस्लाम - मैकश अकबराबादी
तसव्वुफ़ कुछ इस्लाम के साथ मख़्सूस और उसकी तन्हा ख़ुसूसियत नहीं है।अलबत्ता इस्लामी तसव्वुफ़ में ये ख़ुसूसियत ज़रूर है कि दूसरे मज़ाहिब की तरह इस्लाम में तसव्वुफ़ मज़हब के ज़ाहिरी आ’माल और रस्मों के रद्द-ए-अ’मल के तौर पर पैदा नहीं हुआ है बल्कि इब्तिदा
ज़िक्र-ए-ग़ौस-ए-आ’ज़म अ’ब्दुल-क़ादिर जीलानी - मैकश अकबराबादी
इस्म-ए-मुबारक अ’ब्दुल-क़ादिर,लक़ब मुहीउद्दीन और कुन्नियत अबू-मोहम्मद है।नसब-ए-मुबारक वालिद-ए-बुज़ुर्गवार की तरफ़ से इमाम-ए-दोउम हज़रत सय्यिदिना हसन अ’लैहिस्सलाम तक और मादर-ए-मोहतरमा की जानिब से इमाम-ए-सेउम हज़रत सय्यदुश्शुहदा इमाम हुसैन अ’लैहिस्सलाम
आदाब-ए-समाअ’ पर एक नज़र - मैकश अकबराबादी
मैंने इस रिसाले में गाने के ज़ाहिरी पहलू पर नज़र की है या’नी शरई’ हैसियत से बह्स की है। सूफ़िया का एक फ़िर्क़ा ख़ुसूसन चिश्तिया गाने को सुलूक में मुफ़ीद ख़्याल करता है और चूँकि ये तक़र्रुब इलाल्लाह का सबब होता है इसलिए ताआ’त-ओ-इ’बादात में शामिल हो जाता
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere