मुबारक हुसैन मुबारक का परिचय
उपनाम : 'मुबारक'
मूल नाम : मुबारक हुसैन मुबारक
मुबारक हुसैन मुबारक अ’ज़ीमाबादी सय्यद शाह तबारक हुसैन काकवी इब्न-ए-शाह तय्यिमुल्लाह काकवी के बड़े साहिब-ज़ादे हैं। अपनी सख़ावत, सैर- चश्मी, मुरव्वत और रास्त -गुफ़्तारी में अपनी नज़ीर आप थे। रईसाना-ज़िंदगी बसर की और लोगों के साथ हुस्न-ए-सुलूक और दाद-ओ-दहिश में बे-इंतिहा दौलत सर्फ़ की। रुऊसा-ए-अ’ज़ीमाबाद में मुम्ताज़ हैसियत रखते थे।अपने सख़ी और जव्वाद होने का अपने ही एक शे’र में इशारा किया है। घर भी लुट जाए तो नहीं पर्वा कुछ अ’जब हाल है सख़ी का हाल आपको शाइ’री से भी बड़ी दिल-चस्पी थी। तबीअ’त-रसा पाई थी। वहीद इलाहाबादी से शरफ़-ए-तलम्मुज़ हासिल था। कलाम बहुत पाकीज़ा और दिल-कश होता था। फ़ारसी तहरीर भी बा-मुहावरा और दिलचस्प होती थी। रईसाना शान-ओ-शिकोह के साथ हद दर्जा मुंकसिरुल-मिज़ाज और नेक- तबअ’ थे। आपकी पैदाइश 11 सफ़रुल-मुज़फ़्फ़र 1269 हिज्री को शाइस्ताबाद में हुई। तारीख़ी नाम ख़ैरात महबूब है। आपका ज़्यादा-तर क़याम लोदी कटरा, पटना में रहता। अपने वतन-ए-अस्ली काको से उनको बड़ी उल्फ़त-ओ-मोहब्बत थी। काको का कोई भी बाशिंदा मिलने जाता तो बड़े ख़ुलूस-ओ-मोहब्बत से पेश आते और वालिहाना तौर पर उस से सर-गर्म-ए-गुफ़्तगु रहते। आपको शे’र-ओ-शाइ’री से बड़ा शग़फ़ था तबीअ’त-रसा पाई थी। कलाम मुख़्तसर मगर बड़ा बा-मज़ा होता। वहीद इलाहाबादी की इस्लाह से और भी जिला पड़ जाती थी। अफ़सोस है कि कलाम शाए’ न हो सका और ज़ाए’ हो गया। आख़िर में बीनाई से महरूम हो गए थे। मुबारक हुसैन मुबारक शे’र-ओ-शाइ’री की महाफ़िल भी मुंअ’क़िद किया करते थे। बा’ज़ दफ़्आ’ तो दूसरों की महफ़िल में शरीक हो कर उसे रंग-ओ-नूर से भर देते। इब्तिदा में वहीद इलाहाबादी से इस्लाह-ए-सुख़न लेते रहे फिर हज़रत शाह अकबर दानापुरी से अपने कलाम पर इस्लाह ली। गुलदस्ता-ए-बिहार में मुबारक के कलाम भी ख़ूब छपा करते थे। मुबारक हुसैन मुबारक के इसरार पर हज़रत शाह अकबर दानापुरी ने एक किताब ख़ुदा की क़ुदरत तहरीर फ़रमाई थी जो पटना से 1305 हिज्री में शाए’ हुई थी। मुबारक हुसैन मुबारक अ’ज़ीमाबादी ने19 जमादियस्सानी 1334 हिज्री को अ’ज़ीमाबाद में इंति क़ाल किया और हज़रत शहाबुद्दीन पीर-ए-जगजोत के आस्ताना के बाएं पहलू में मद्फ़ून हुए।