अपनी ज़रूरत से पहले दूसरों की ज़रूरत का ध्यान रखना, यही अहल-ए-करम का तरीक़ा है।
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इंसान दो दुनियाओं का मेल है, एक है आलम-ए-ख़ल्क़ जिस से उसका बाहरी रूप जुड़ा है और दूसरा है आलम-ए-अम्र जिस से उस की रूह जुड़ी है।
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काम का असली मामला दिल से है, अगर दिल ख़ुदा के अलावा किसी और चीज़ में उलझा हुआ है, तो वह बेकार और अधूरेपन से भरा है। केवल बाहरी अमल और दिखावे की इबादत से कुछ हासिल नहीं हो सकता।
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यह कितनी बड़ी ने'मत है कि ख़ुदा अपने बंदों को जवानी में ही तौबा की तौफ़ीक़ दे और उस पर उन्हें बने रहने का हौसला भी बख़्शे।
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सेहत, फ़ुर्सत और वक़्त को एक क़ीमती मौक़ा समझो और हर वक़्त ख़ुदा के ज़िक्र में लगे रहो।
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