आसी गाज़ीपुरी के दोहे
मै चाहूँ कि उड़ चलूँ पर बिन उड़ा न जाय
काह कहौं करतार को जो पर ना दिया लगाय
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काजर दूँ तो किरकिराए सुर्मा दिया न जाए
जिन नैनन माँ पिय बसै दूजा कौन समाए
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भुज फरकत तोरे मिलन को स्रवन सुनन को बैन
मन माला तोहि नाम का जपत रहत दिन रैन
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