भगवतरसिक के दोहे
ग्राम-सिंह भूखो विपिन, देखि सिंह कौ रूप।
सुन-सुनि भूखैं गलिन में, सबै स्वान बेकूप।।
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भगवत जन चकरी कियौ सुरत समाई डोर
खेलति निसिदिन लाडली कबहुँ न डारति तोर
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere