ये महानुभाव पंथ के अनुयायी थे। इनकी पत्नी हिरांवा ने इनका मार्गदर्शन किया। कहते हैं कि एक दफा इनके घर अतिथि का आगमन हुआ। तभी इनकी कन्या मरणासन्न हो गयी। लेकिन इनकी पत्नि अतिथि की सेवा में लगी रही। कहते हैं इस घटना के बाद दोनों को संसार से विरक्ति हो गयी और दोनों ने संन्यास ले लिया। संगीत में रुचि होने की वजह से इन्होंने अधिकतर गेय पदों की रचना की है।