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Gharib Das

1717 - 1878 | Mauja Chhudani, India

Saakhi of Gharib Das

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panchhī uḌai ākās kuuñ kit kuuñ kinhā gaun

ye man aise jaat hai jaise budbud paun

panchhi uDai aakas kun kit kun kinha gaun

ye man aise jat hai jaise budbud paun

nirgun nirmal naam hai avigat naam abanch

naam rate so dhanpatī aur sakal parpanch

nirgun nirmal nam hai awigat nam abanch

nam rate so dhanpati aur sakal parpanch

lae laahā lījiye lae ki bhar le bhaar

lae ki banijī kījiye lae sāhūkār

lae ka laha lijiye lae ki bhar le bhaar

lae ki baniji kijiye lae ka sahukar

naam abhai pad nirmalā aTal anūpam ek

ye saudā sat kījiye banijī banij alekh

nam abhai pad nirmala aTal anupam ek

ye sauda sat kijiye baniji banij alekh

is maaTī ke mahal meñ nātar kījai mod

rav rañk sab chaleñge aape kuuñ le sodh

is maTi ke mahal mein natar kijai mod

raw rank sab chalenge aape kun le sodh

sāhab sāhab kyā krai sāhab tere paas

sahas ikīsoñ sodhi le ulaT apūTHā svāñs

sahab sahab kya krai sahab tere pas

sahas ikison sodhi le ulaT apuTHa swans

phūñk phāñk fāriġh kiyā kahīñ na paayā khoj

chet sakai to chetiye ye maaya ke choj

phunk phank farigh kiya kahin na paya khoj

chet sakai to chetiye ye maya ke choj

चेत सकै तो चेतिये कूकै संत सुमेर

चौरासी कूँ जात है फेर सकै तो फेर ।।

यह मन मंजन कीजिये रे नर बारंबार

साईं से कर दोसती बिसर जाय संसार ।।

जा घट भग्ति बिलास है ता घट हीरा नाम

जो राजा पृथ्वी-पती का घर मुख्ते दाम ।।

नंगा आया जगत में नंगा ही तू जाय

बिच कर ख्वाबी ख्याल है मन माया भरमाय ।।

जाते कूँ नर जान दे रहते कूँ ले राख

सत्त सब्द उर ध्यान घर मुख सूँ कूड़ भाख ।।

रतन रसायन नाम है मुक्ता महल मजीत

अंधे कूँ सूझै नहीं आगे जलै अँगीठ ।।

निरबानी के नाम से हिल मिल रहना हंस

उर में करिये आरती कधी बूड़ै बंस ।।

रंचक नाम सँभारिये परपंची कूँ खोय

अंत समय आनंद है अटल भगति देउँ तोय ।।

मात हिता सुत बंधवा देखे कुल के लोग

रे नर देखत फूँकिये करते हैं सब सोग ।।

गगन मँडल में रम रहा तेरा संगी सोय

बाहर भरमे हानि है अंतर दीपक जोय ।।

यह संजम सैलान कर यह मन यह बैराग

बन बसती कितही रहौ लगे बिरह का दाग ।।

महल मँडेरी नीम सब चलै कौन के साथ

कागा रौला हो रहा कछू लागा हाथ ।।

कुटिल बचन कूँ छाँड़ि दे मान मनी कूँ मार

सतगुरू हेला देत जनि डूबै काली धार ।।

जनम जनम को मैल है जनम जनम की घात

जड़ नर तोहि सूझै नहीं ले चला चोर बिरात ।।

चित के अंदर चाँदना कोटि सूर ससि भान

दिल के अंदर देहरा काहे पूज पखान ।।

मन माया की डुगडुगी बाजत है मिरदंग

चेत सकै तो चेतिये जाना तुझे निहंग ।।

दया धर्म दो मुकट हैं बुध्दि बिबेक बिचार

हर दम हाजिर हूजिये सौदा त्यारंत्यार ।।

गलताना गैबी चला माटी पिंडय जोख

आया सो पाया नहीं अन आये कूँ रोक ।।

ऐसे लाहा लीजिये संत समागम सेव

सतगुरू साहब एक है तीनों अलख अभेव ।।

अंत समय को बात सुन तेरा संगी कौन

माटी में माटी मिलै पवनहिं मिलिहैं पौन ।।

ये बादर सब धुंध के मन माया चितराम

दीखै सो रहता नहीं सप्तपुरी सब धाम ।।

नाम बिना निबहै नहीं करनी करिहै कोट

संतों की संगत तजी बिष की बाँधी पोट ।।

रतन खजाना नाम है माल अजोख अपार

यह सौदा सत कीजिये दुगुने तिगुने चार ।।

भगति गरीबी बन्दगी संतों सेतीं हेत

जिन्ह के निःचल बास है आसन दीजे सेत ।।

झिल-मिल दीपक तेज कै दसों दिसा दरहाल

सतगुरू की सेवा करै पावै मुक्ता माल ।।

धन संचै तो संत का और तेरे काम

अठसठ तीरथ जो करे नाहीं संत समान ।।

नैना निरमल नूर के बैना बानी सार

आरत अंजन कीजिये डारो सिर से भार ।।

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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